सेंस फणाळो माथो धूणे, धरर धरती धूजेला
धू धू कार मचेला भारी, अगल-बगल नहीं सूझेला
बिना दीखतो परळो हूसी, अम्बर अवट अमूझेला।
दिन में रात रात में दिन है, डांफर डाकण जूझेला
का पुरषां रा काढ काळजा, ककाली ने पूजेला।
लूंगाड़ां रे लांपो लागे, भूंडां ने भच भूंजेला
बेलड़ियां तळ तांता ताणे, अळिया जटक अळूझेला।
समदर छोळ उठेला ऊँची, घटा घोर घुर गूंजेला
लूंट-झूठ री माया मिटसी, डीघा डूंगर ढूबेला।
लाखां-लेखण, कोट-कांगरा, अभकी वख्त तुईजेला
आण-दुहाई फिरे अळखरी, मिनख-मिनखता पूजेला।
धोई-धुपी सोवनी काया, सज-सूली पर सूजेला
किया कबाड़ा परगट होकर,लांबो लेखो बूझेला।
ऊंडा घाव पाधरा हूसी, फट फट फाला फूटेला
नुंई जगत रो नयो जमारो, नुंई गाय घर दूझेला।