कंतै सूं थूं अळगी पड़गी,
ज्यूं मिरगी मिरगै सूं टळगी।
सावणियै री रातां ढळगी,
हिवड़ै तणी हिलोरां बळगी।
किण विध होवै हमैं अळोवण।
औ बिजोगण! थूं दु:ख भोगण॥
हियौ धमण ज्यूं धुकतौ रेवै,
होठ सदा सिंयोड़ा रेवै।
दिल री बातां किणनै केवै,
हिवड़ौ दै तौ किणनै देवै।
याद करै थारा कणडोरण।
औ बिजोगण! थूं दु:ख भोगण॥
थूं नांखै है घणां निसांसा,
मनड़ै री ज्यूं मरगी आसा।
पलट्या थारा बै सब पासा,
तौ भी मन में नहीं निरासा।
कद तौ आवेलौ आथोमण।
औ बिजोगण! थूं दु:ख भोगण॥
पराग मधु अब बळगा सै ही,
निरबळ होगी सगळी देही।
दूर गयौ बौ घणौ सनेही,
थारौ जीवण जांण अगेही।
पै’ला ही सेजां री पोढण।
औ बिजोगण! थूं दु:ख भोगण॥
इण दुनियां रौ कोई पत ना,
बातां में बिलमीजै मत ना।
झोडै अपणौ मारग मत ना,
देख! चूकजा थारौ पग ना।
रूप नहीं थारौ अब कांमण।
औ बिजोगण! थूं दु:ख भोगण॥
कई मिळ पूरा डुळियोड़ा,
लाधै कई घणां खुळियोड़ा।
कई बैठा चेता चुळियोड़ा,
कई दिखै पूरा उळियोड़ा।
रांम नहीं आंमै बडभागण।
औ बिजोगण! थूं दु:ख भोगण॥
कोई किणनै कीं नीं लागै,
नीं बैवणियौ कोई सागै।
कई हिड़क्योड़ा बैठा आगै,
काटण सारू लारै लागै।
हिड़क्योड़ै सूं होवै ओगण।
औ बिजोगण! थूं दु:ख भोगण॥
दूर गयौ नैया रौ मांझी,
विरह तपण सूं पूरी दाझी।
थारै पग पग बणगी गांसी,
मूंडै माथै जबर उदासी।
चौखा नीं लागै आभूखण।
औ बिजोगण! थूं दु:ख भोगण॥
सगळा आ ही बात बतावै,
विरह मिनख नै घणौ सतावै।
कदै बगत हिवड़ौ जळपावै,
कदै बगत काया कळपावै।
देख बणैला थूं संजोगण।
औ संजोगण! थूं सुख भोगण॥