जद रतन तळाई रै

आडा टेढा पड़दा बंधाय,

झीलण जावती राजकंवरी

सहैल्यां रे झूलरै

म्हैं उतारती निवसण सगळा सूं पैला

अर पाणी रा दरपण में

निहाळती म्हारो रूप

मैला गाभा सूं मुगत

म्हैं अेक देही जात

जद ढोळती म्हारै अपधन रो

रूप कूंपळो निरमळ नीर

घुळ जावती म्हारी कूं कूं पगथळियां जळ में,

ससहर ज्यूं पळकती

म्हारै मुखड़ा री पड़छाया

अर तिरती छौळां माथै

म्हारी मुळक हंस री पांख ज्यूं!

पण ओझाड़ा खाय

निकळणो पड़तो नाडी रै बारै

अर धूजतै डीलां पैरणी पड़ती

कंवरी री उतरयोड़ी पोसाकां!

उमगंतै अंगां काटती खड़पां

कांचळी फाट्योड़ा टूंकिया

बिना अंतरसेवै कळियां रो घाघरो

अर बदरंग लूघड़ी!

अणसमझ म्हैं बुझती रोजीना

थूं म्हारै डील क्यूं आयो

हे कामणगारा रूप!

थारै ओपतो सिणगार कठा सुं लाऊं

च्यार दिनां रा पावणा!

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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