सगळै दिन घर में अेकली

म्हारै कमगर हाथां सूं

थारै तांईं अेक मुगट बणायौ।

काची केळ रै हरियळ पांनड़ां माथै

मूंघा मोती जड़िया,

रेसम री आटी संवारी,

सोना रा मांडणा मांड्या,

माथै छबकाळी मोरपांख सजाई।

सगळै दिन घर में उमंगां भरती

थारी मुरली रै सोनलिया घूघरा पोया,

रूपल डोरां

चिरमी री माळा गूंथी।

म्हारा चतर खांमची हाथां सूं बणायोड़ा

मुगट, मुरली नै माळा

धारण करियोड़ा

थारा रूप नै

अंतस री आंख्यां सूं

निरखण लागी।

पण सांझ पड़्यां कुंज रै पड़वा में

थूं म्हारै तांई

हेमपुहप री बेणी,

पोयणा पोयोड़ौ हार,

नै केवड़ा री काची कळियां रा भुजबंध

गूंथ लायौ

तौ म्हारी सगळी चतराई

मगसी पड़गी,

पांण उतरगी।

फूलां रा गै’णा पैर

म्हैं जमना रै दरपण में

म्हारौ रूप निहार्‌यौ

तौ उण इदकै रूप रा गुमेज में

थनै पुजापौ चढ़ाणौ बिसरगी।

थूं तौ दिन भर

अेकलौ बैठ

उमंगां सूं

आंनै बणाया होसी।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : सत्यप्रकाश जोशी ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै