हूं नान्हो सो दिवलो म्हारा आज सराऊं भाग रे।
घणै जतन सूं जोत जगा, आंचळ री ओट लुका ढकती
सज सोळै सिणगार सुवागण, ठुमकै सूं पगलां धरती
पग-पग पांती लगा, कोट-कंगूरां लंगर
धरती रै कण-कण में ढोळ उजास रे
आज जगावै काळी-बोली रातड़ली रे।
बारै मासी नींद सोयो सुवाग रे
हूं नान्हो सो दिवलो म्हारा आज सराऊं भाग रे।
नागण सो बळ खातो, उठ कळमस धूंओ
आभळ ढकणी पर काळो काजळ पाड़ै
मिरगानैणी रात राणी पिव मिलबानै
काजळ रेख सुवाय मुळकती जाय रे
पग-पग जगती जोत, चिलकती ऊजळ डग्गर
धरती रो अंधियारो आज समेट्यो अंबर
मिली जोत में जोत, भाग में भाग रे
हूं नान्हो सो दिवलो म्हारा आज सराऊं भाग रे।