भरी भरमन्या को भरमायो।

म्हूं गीतां कै गेलै आयो॥

सारी धरती म्हारी बाड़ी

सारा तारा म्हारा माळी।

चन्दरमा आदोळ्यो, सूरज

लाग्यो छै बाड़ी सूं हाळी।

दन दन को रूखाळ तांवड़ो

रात चांदणी करै रुखाळी।

बादळ पाणत करै, बीजळी

क्यार्‌यां खोदै ले’र कुदाळी।

म्हूं गीतां को धन नपजाऊं

करूं लावणी, लाण लदाऊं

खुसियां सूं हांसू म्हूं,

गीतां सूं मल मल मळक्यो, मुसकायो॥

म्हारा मनड़ा की पीड़ा

कै म्हूं जाणूं कै आंखर जाणै।

भूली भटकी बातां काणै

कद बैठै ठाम ठकाणै।

अमगी अमगी फरै भावना

कुण बातां को भाव पछाणै

अटक्या अटक्या आंखर बैठै

ऊं ठाणै कद, कद ईं ठाणै।

म्हूं सपना छन्दां में तोलूं

म्हूं दोहां कै मूंडै बोलूं

मन में पाळूं बाणी में ढाळूं

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
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