थोड़ो ई पाणी है
मोटै ताल
बस तळौ-तळौ भरियोड़ौ
पसवाड़ै बैठा थक्या हारया
पंखेरुआं रा झुंड आला करै कंठ
कुण जाणै क्यूं–
अेक पंखेरू
ताकै है लगोलग
खाली सूकौ ताल
रैय-रैय’र करण लागै
अणथक चक-चक
अेक ई सुरताळ में जांणै
किणीं नै हेरतौ हेला मारतौ
करतौ जाप
फेरूं अबोलो हुय
ताकै सूकौ ताल
सगळां रै सागै दीखतौ
साव अेकलौ
दो टोपा टपकै
म्हारी आंख सूं
जिणमें कितरा ई बणै बिगड़ै चितराम
अर आगलै ई पळ उडग्या सगळा पंखेरू
ओझळ हुयग्या अकास मांय
वौ पंखेरू बैठौ है ओज्यूं तांई
किणरी उडीक मांय?
कांई इणरौ कोई घौंसलो
है भी के नीं?