सीळी पून रै समचै

उडिया

थारा बाल

म्हारा होश

किण

अदीठ आस सूं

बांध लियौ

म्हारौ मन रूपी घोडौ

थिर ऊभी थूं।

मार लियौ मीर।

कितरा

क्यूं नीं रचीजौ

चक्रव्यूह

थार-म्हारै बीच

अड़िग ऊभो है

अढाई आखरां रौ अभिमन्यु

बड़ जावैला

बगतसर बिचाळै

च्यार आंख्या नैं चीर।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : शंकरसिंह राजपुरोहित ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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