अेकर

मैं आभै नै बूझ्यो

थारै मांय कितराक है सूरज

चान्द

तारा

निहारिका’र उल्का?

कितरोक है

अेक-दूज़ै रै बिचाळै

पछेतो’र आंतरो?

ऊथळो हो घणो साँतरो—

तू है गिणतकार रो पिंडत!

तू है जोतख रो जाण कार!

तू है, ग्यान-विज्ञान रो धणी!

गिण’र देख लै भाया!

मिण’र देख लै

पछेता’र आँतरा!

नेड़ै ऊभोड़ो अेक जणो बोल्यो—

नौलख तारा

अेक चनरमा

दूजो सुरजी

तीजो धूजी

पूरमपूरी है गिणती!

अरे बा’! भाईजी...

इतरो ठा’ कोनी?

थानैं है निमसकार!

कैयनै बो

अेक व्यंग-भरी हासी सूं

होवण लाग्यो लोटपोट

उणरी

कुंडळणी-नाड़ी रो नाग

फुफकारां मारतो

मनै डँसण लाग्यो!

मैं

ग्यान-विग्यान नै

कसौटी उपरां कसण लाग्यो!

पण उण कानी जोवतां पाण

मैं सिर उपरां पग मेल’र

भाज छुट्यो!

अर थम्यो

जणा पग धरती उपरां हा!

(धरती म्हारो सिर कोनी)

आभो अजेस उपरां छायोड़ो

गीत अणगायो है

अर है गायोड़ो!

मैं

म्हारै च्यारूंमेर

सावचेती सूं जोयो

कोई

नेड़ै-निड़ांस

है तो कोनी क...?

जद होयग्गो भरोसो

म्हारै’र आभै रै सिवाय

कोई नी है

जणा छानोमानो

बूझना-तणी रागळी

फेरूं उँगेर दीनी—

थारै मांय कितराक...?

म्हारलै मूंडै रीं बात उपरां

झपटो मार्‌यो

अेक ‘स्पुतनिक’ री चील

अेक ‘अपोलो’ रो बाज!

अर मैं

फळावण बैठग्यो

म्हारी बूझणा रो कटवां-ब्याज

पण मैं बाणिका मांय

निरांठ कमजोर!

अमरीकी रोकड़ मांय

चान्द खतीज्योडो

मंगळ, बुध भिसपत, सुकर, सनी

नकल-बही मांय

रूस री रोकड़ सूं

पटाण करतां

कनतां-करतां

मैं अमूझग्यो

अबै मैं

अेक गीत गावणो चावूं...

‘इन्द्राय पवते मद:

सोमो मरुत्वते सुत!’

स्रोत
  • पोथी : कूख-पड़यै री पीड़ ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकान्त ,
  • प्रकाशक : कल्पना लोक प्रकाशन
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