नसीब री निसरणी

मिनख नैं

पांगळो करै

अर

सोरो कर द्‌यै

सैंग कीं

जियां कै

आपरी सगळी

गळतियां

भाग माथै

मांडी जा सकै है।

पण साच तो है कै

आभै रै किंवाड़ नीं हुवै

इणीं कारणै

माटी मांय

बूरेड़ा मतीरां दाईं

कीं हिम्मती पूगज्यै

आभै तांई

मिथक तोड़ण खातर।

आओ

आपां टाबरां नैं

सांईवाल

बणन द्‌यां

थोड़ै-थोड़ै

आभै रा

स्यात

कई निसरणियां टूटै

कई बैसाखियां छूटै।

स्यात

झूंपड़ै रै सरकणां

मांखर दिखतो आसमान

मिल ज्यै माटी सूं।

स्यात

‘स्यात’ छूटज्यै।

स्रोत
  • पोथी : रणखार ,
  • सिरजक : जितेन्द्र कुमार सोनी ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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