म्हैं नक्कारूं हूं

वां सब बातां नैं

जो कैवै—

बेटी तो परायी हुवै

डोली में बैठ’र आवै

अर अरथी में ही जावै!

म्हैं खारिज करूं हूं—

वां सब संस्कारां नैं

जो कैवै, कै

बेटी रूंखड़ा ज्यूं बधै

जठै टोरो टुर जावै

बेटी आप करमी व्है

बाप करमी नीं व्है!

म्हैं जबान री कतरणी सूं

कतरूं हूं वै सब ओखाणा

जो कैवै—

कै स्त्री रो चरित अर

मिनख रो भाग कोई नीं जाणै!

म्हैं खारिज करूं हूं—

धरम री उण रीतां नैं

जो करावै कन्यादान

अर वंश रा फेर में

पीहर री डेरी सूं

लाड रा अख्तियार खोस ले जावै!

म्हैं उजाड़ जाणूं

वां घरां नैं

जठै मरद

पति परमेसर बण

नित रा लुगाई रै जूता लगावै!

थे कैवो तो कैवो सा

म्हैं कांई करूं?

जठै भाग कोसिया जावै

जठै पिसाच बण्यो

दायजै रो खीरो

नित जीवणी लीलै

जठै खेलकणियो जाण

नार नै नंदी बोरावै!

म्हैं उतार फेकूं

सगळी अबखायां नैं

जिणनै करम जाण

ओढै अर ढोवै

मरजादा सूं बंधी

तावणका तोड़ै अर

हरफ नीं हिवावै!

म्हैं आपणी लेखणी सूं

रच सकूं तो रचूं

असी स्त्री

जिणरो मान व्है,

जकी बाप, धणी अर

बेटा रै खांदै नीं

आपणै वजूद सूं

ऊबी होवै

ओळखी जावै

धुतकार नीं

इज्जत री रोटी पावै

देह री नीं

मिनखपणा री

प्रतिष्ठा पावै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विमला भंडारी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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