बरसाती
झिरमिर छांटां सूं
ऊगी कविता
पछै लूवां री लाय
आंधियां झेली पल-पल
आखर-आखर मांय
कळप नै सांमी राखण
भावां वाळै जूनै मारग
पूगी कविता।
किरसां वाळी पीड़
मजूरां री अबखाई
दुखियारां री दाझ
आखरां में अरथावण
आंख्यां ऊगौ रोस
सबद रै मांय उतरियौ
उठगी हिंवड़ै झाळ
बणी ही पैली कविता।
देख्या जग रा सांच
बिखरतां
किरच्या-किरच्या कांच
पग व्है लोहीझांण
हाथ ई सूना व्हैग्या
तो ई हिम्मत राख
बूवौ जद मारग-मारग
तद अंतस में आय
अगन ज्यूं निकळी कविता।
परभातै री पोर
बोलता पंछी मीठा
वायरियौ पंपोळ
प्रीत री राग छैड़तो
उण बेला पर आज
बोल रा भाखर उछळै
मूंडै भूंडी गाळ
काळ नै घर में न्यूंतै
इण कारण मजबूर
हींयै सूं निरझर झरिया
कळकळ कळकळ नाद
करती हिवड़ै मांही
मेटण नै संताप
ऊतरी आखर कविता।
पसरायौ धर पाप
घड़ौ ई पण नीं फूटौ
मिनख-मिनख नै मार
चौवटै गोठां लेवै
कूड़-कपट री कार
लगोलग वधती जावै
वधियौ व्याभिचार
सांस सज्जन री छूटै
तूटै सगळा तार
स्नैह नीं पाळै कोई
हाय हाय बस हाय
सुणीजै चौतरफी ई
प्रतिरोधां री पाळ
बंधावण ऊभी कविता।
ताकड़ियां रौ तोल
मोल नीं किणी चीज रौ
खावै दिस-दिस झोळ
मिनख मग सीधै जातौ
जगती रौ वौपार
किणी रै समझ नीं आवै
घर रा भाती आज
तांणियां तोपां ऊभा
सगा-संबंधी साथ
पाछ नीं लारै राखै
काळ वडौ विकराळ
बारणै मांही आयौ
थळकण-बाखळ बाड़
नैण में पांणी आयौ
देख सकळ दरसाव
प्रीत रै धवळै पानां
खांचण सीधी लीक
ऊतरी म्हारी कविता।