गाडरां जैड़ा धोळा केसां री बिखर्‌योड़ी लट सूं झूंपै रौ उळझ्योड़ौ खींपड़ै रौ तिरणौ पोपली आंगळ्यां सूं काढ, हाथ में अंगरेजी बांवळियै रौ बांको चिटियौ लेय, खाड़का पैर’र डोकरी समधा बारै निकळी। झूंपै रौ फळो बीड़’र भंडारियां री दुकान सांम्ही चाली। झीर-झीर हुयोड़ौ गोडां लग रौ घागरौ अर लीर-झाण हुयोड़ौ ओढणौ। ओढणौ घणौ मैलौ नै जूनौ, जिकौ रंग रौ कीं ठाह पड़ै नीं। अेक पल्लै संभाळ’र राख्योड़ा जुंवार रा दाणा।

झूंपै सूं बीसेक पग माथै हड़मानजी रौ थान। कीड़ी री चाल डोकरी चिटियौ हिलाती थान तक पूगी। थान कनै जाय’र धोक दी। जुंवार रा च्यारेक दाणां पेड़लै माथै बिखेर’र डोकरी पाछी झूंपै सांम्ही वळी। बेरणौ उघाड़्यौ। खाड़का उतार्‌या। चिटियौ खूंणै में ऊभौ कियौ। धान संभाळ’र पाछौ मटकै में घाल्यौ। मटकै माथै ढक देय’र झूंपै बारै नीसर गवाड़ी में छोटी-सीक नीमड़ी री नाजोगी छियां में बैठगी।

ऊनाळै री रुत। हवा बंद। तपत घणी। नीमड़ी रै नीचै अेक लांबौ-लड़ाक कुत्तौ पड़्यौ जोर-जोर सूं सांस लेवै। कूतरै नै धुतकार’र चिटियौ सांम्हौ कियौ, पण कूतरौ किणी रिश्वतखोर बाबू ज्यूं निसरड़ौ हुय, जिकौ डोकरी री धुतकार नै धार्‌यां बिना चुपचाप आंख्यां मींच’र पड़्यौ रैयौ। डोकरी में घणौ सत कठै..? वा पण अेक कांनी पसरगी।

समधा मन नै समझायौ म्हारै कांई बाई..! म्हारै तौ कोई धियौ कोई पूतौ। म्हारै अठै कुण है जिकौ वै पाछौ देवै। कदैई करमां छाछ रै छांटै रौ काम पड़ै, जिकौ दो’रौ घालै। ...नै लारै जुंवार रही कठै बाई। अैड़ौ माणौ भरी हुवैली तौ दस-पंदरै दिन नीठ चालैली। पछै किणरै मूंडै सांम्ही जोवणौ..? पोपली मूंडौ कर’र किणरै सांम्ही हाथ पसारां बाई ! जिण पांतर तौ पुसबाड़ी नै बैंत कांचळी रौ कपड़ौ नईं दियौ, नै सात सुख ! समधा अेक निरासा भर्‌यो सैरकौ नांख्यौ।

समधा सूती पण मन नै जक कठै..? कांई ठाह छोरी हेजाळी है, लाण माथै हाथ फेरावण नै आई तौ कांई हुवैलौ..? जे खाली हाथ फेरूं तौ भूंडौ नीं लागै..? भूंडौ तौ बाई लागै ईज ! समधा रांड तौ कांई हुयौ..? घर में कोई कमाऊ कोनी पण रोट्यां रौ देवाळ तौ द्वारका रौ नाथ है। दाणै-दाणै माथै खाणै वाळै री छाप उण लगाई है। मन तौ लोभ करै ईज ! मन रौ कांई “मन लोभी मन लालची, मन चंचळ, मन चोर !” पण मन रै मतै थोड़ौ ईज चालीजै।

चिटियै रौ सहारौ लेय’र समधा उठी। रेत झटकण घाघरै माथै हाथ झटक्यौ। झूंपै में गई। फाट्योड़ै ओढणै रै पल्लै में घणै जतन सूं जुंवार भरी। च्यार-छह दाणां बिखरग्या हा, उणां नै अेक-अेक कर चुग्या। अन्न देवता है। देवता नै पगां में कियां बिखेरां बाई ! सूझतौ थोड़ौ हौ जिकौ जमीं माथै हाथ फेर-फेरनै सावळ जोयौ। दो-च्यार कांकरां नै जुंवार रै भरोसै घाल्या। मूण माथै ढक दीनौ। फळौ ढक’र दुकान कांनी जावण बारै नीकळी जद संतोख रौ अेक टुकड़ौ मूंडै माथै उतर्‌यौ लाण पुसबा नै बैंत कांचळी तौ देवणी’ज चाईजै।

जोग री बात, डोकरी री आंख्यां डबडबायगी। अठै चाईजै जिकौ बठै चाईजै। नींतर नरबदा रै कोई जावण रा दिन हा..? कितरी भली ही लाण ! बोलती जरै फूल खिरता। जेठाणी-जेठाणी कैवती जीभ सुखावती ही लाण ! अंग में आळस रत्ती-भर कोनी हौ। आखै दिन घोड़ै दांई दौड़ती फिरती। फगर-फगर काम करती। सगळां सूं बणाय’र चालती। फूटरीफरी ! गीत-गाळ में हुंसियार ! पण इसा मिनख ओछा दिन लिखायनै लावै ! अेक दिन ताव आयौ, नै जाणै ही ही कोनी ! सपनै वाळी बात बणनै रहगी। उण दिनां पुसबाड़ी पांचेक बरसां री हुवैली। हरनाथ म्हारै खोळै में नैनकड़ी लट नांख नै कैयौ हौ “भाभी, बापड़ी अबोली जिनवार है, हमैं थे जाणौ। म्हैं तौ थांनै सूंप’र...।” कह परौ गळगळौ हुय’र रोवण लाग्यौ।

सळ भर्‌यौड़ै पोपलै मूंडै माथै मुळक री अेक रेख बिखरी। कैड़ी म्हारी छाती रै चिप’र छानी रही ही। जाणै सागी मां होवूं। कोई आगोतर रौ लैणियौ हुवै है। म्हारै साथळ नईं फाटी तौ कांई, सांवरियै रै औरतौ पूरौ करवावणौ हुवै तौ..., चेहरै माथै उदासी री अेक बादळी ऊमटी अर बिना बरस्यां मारग बुही। निपूती हुवण री बात सूळ हुवै ज्यूं चुभी। बाळ-विधवा ही लाण..!

अबै पुसबा कैड़ी फूटरी दीसै। कपड़ौ लत्तौ कैड़ौ ओपै, जाणै इन्दर री अपछरा ! गाल कैड़ा गुलाबी पड़्या है, लोही जाणै हमैं टपकै कै हमैं टपकै ! चेहरै माथै नूर आयग्यौ ! मूंडौ जाणै देखौ तौ देखता ईज रैवौ। च्यार दिनां पैली लटां में जुंवां रा माळा टिरता हा। म्हैं कह-कह नै थाकगी अे पुसबाड़ी रांड, थारै इतरी-इतरी जुंवां टिरै। आव, माथौ परौ धोवूं। कैड़ौ मैलौ चिकार हुयौ है। कपड़ा पैरती तौ जाणै खूंटै रै परा टेरिया हुवै ज्यूं। पग री ब्याउवां सूं लोही बैवतौ। पण हमैं..? . ..बगत-बगत री बात है।

पायली जुंवार देय’र डोकरी समधा बैंत भर्‌यौ तापेटै रौ टुकड़ौ लाई। कांई करां बाई..? बाणियै रौ बेटौ, लेतां खायनै देतां खाय। नींतर पायली धान रौ रोकड़ी सैकड़ौ रिपियौ हुवै, अर आगलै जमानै में रिपियै रौ तौ घाघरौ आवतौ पूरौ अस्सी कळी रौ ! पण इण जमानै रौ कांई करणौ..? मिनखां मांयलौ तौ राम ईज परौ निकळ्यौ है। पण राम तौ लेखौ राखै है। आगलै भव में...।

तावड़ौ कीं मोळौ पड़्यौ। पुसबा हाल नीं आई। नैना टाबरां री मां है लाण, बगत कोनी मिळ्यौ हुवै। नींतर उणरौ जीव तौ अठैई पड़्यौ हुवैला। छोरी लाण लायकी वाळी है। कांई ठाह विचारनै नईं आई हुवै कै धा रौ अणूतौ रिपियौ खरच परौ हुवैलौ; कै कांई ठाह माथै हाथ फेरावण जावूं तौ डोकरी खाली हाथ पाछी मेलण सूं लाज मरैली। डोकरी रै अठै कमावण वाळौ कुण है..? अणूता फोड़ा घालणा ! भला मिनखां रा अै ईज लक्खण है। मिलण नै तौ अठै आई जरै मिळी’ज ही ! खिणेक रौ मिळणौ अर दिनां रौ मिळणौ। जावूं, कांचळी बैंत बटका जोगी तौ वा है परी’ ! थो-थो रामजी मा’राज, मां जिसी लायक हुवै। सुहागभाग अमर रैवै। पीळौ ओढै, मीठौ जीमै। पेट ठरै लाण रौ। रामजी माराज, घणौ दुख देख्यौ है। सैंग दिन किसा सीरखा रैवै बाई ! अबै रामजी भला दिन देवै। लाल तापेटै रै पाव गज कपड़ै नै सामट-संभाळनै डोकरी पुसबा रै घर कांनी चाली। तांगिया खाती, आपरी जाण खाताई में।

मिनखां नै तौ किणरौ सुख सुहावै कोनी बाई ! हरनाथ रै गरीब घर नै देखतां किणनै ठाह हौ कै छोरी नै अैड़ौ घर-वर मिळैलौ। पण रामजी सगळां रा दिन फेरै। मिनख भूंडियां कर-कर’र जात रौ मैल धोवै। जान आई जरै कच-कच सरू। मोटौ जोयौ बाई। तीजियांत है बाई। पचास बारै ऊमर है बाई। मिच-मिचियाती आंख्यां, थुलथुलौ डील है बाई। गाबड़ धूजै बाई। कोरौ धन ईज देख्यौ है बाई। सुवाग कोनी देख्यौ। बाप आपरौ घर भर्‌यौ बाई। बेटी रौ सुख कोनी जोयौ। मूंडै जितरी बातां ! म्हैं कैवूं, आपौ-आपरा नसीब है। छोरी लाण आखी ऊमर में हमैं ईज सुख देख्यौ है। इणसूं बत्तौ घर-वर कांई देखै बाई। चोखी घर-गुवाड़ी। भण्यौ-लिख्यौ बींद। गांव में लेण-देण रौ धंधौ। च्यार-च्यार गायां-भैंस्यां दूझै। ताकड़ियां सोनौ तुलै। इणसूं बत्तौ पछै कांई देखै..? सुवाग-भाग तौ भगवान रै हाथ में हुवै। मिनख बापड़ै रौ कांई इख्तियार..? ऊमर तौ भगवान री घाल्योड़ी हुवै, नींतर सूरजड़ी नै देखौ क्यूं नीं, परणी नै डेढ महीनौ कोनी हुयौ, नै नसीब फूटग्या। मां-बाप जोध-जवान हीरौ हुवै जैड़ौ वर जोयौ; जाणै राजकंवर! पण भाग में नीं लिख्योड़ौ हुवै जद कांई हुवै अर पुसबाड़ी, मिनख बूढौ-बूढौ कैवता पण आंगणै दो-दो रतन रमै। चींधड़ हुवै जिसी ही पण राज करै..!

डोकरी हरनाथ रै घर रै नेड़ी पूगी। आसरै सूं जंवाई नै नेड़ौ जाण घूंघटौ काढ्यौ। ओरणै री च्यार आंगळ पट्टी आंख्यां रै माथै टिरगी। फाट्योड़ी माथावटी सूं चिट्टा बांध्योड़ा धोळा केस ऊघड़ग्या।

पुसबा सासरै सारू बहीर हुवै ही। अेकण पसवाड़ै पावणा ऊभा। पचास बारै ऊमर पण शौकीनाई में अव्वल ! परमसुख धोतियौ, टेरेलिन रौ झब्बौ। सोनै रा बटण लाग्योड़ा। काची मीमरी थकी आंख्यां माथै काळौ चश्मौ। हाथ में राजवियां वाळै दांई काम कियोड़ी चन्नण री छड़ी। आपौ-आपरा नसीब ! डोकरी आपरै साद नै थोड़ौ ताबै कर होळै-सीक कैयौ- “बेटी, पुसबा बेटी !”

पुसबा आपरौ सामान बैळकी में रखवावती ही। उणनै डोकरी रौ हेलौ गिनारण री फुरसत ईज कठै..? सगळा नग अेक-अेक कर’र सावचेती सूं गिणै। जे कोई सामान लारै रहग्यौ तौ इणां रौ सुभाव ईज बाळणजोगौ है। पैरण-ओढण में, खावण-पीवण में कितरौ खूटौ, मूंडै मांय सूं हरफ कोनी काढै, पण नुकसाण अेक रत्ती रौ दाय कोनी आवै। अेक-अेक सामान घोख-घोखनै याद करै।

डोकरी थोड़ी ऊतावळी थकी बोली “पुसबाड़ी ! हां अे बाला, सुणै कोनी अे !” पुसबा रौ च्यार बरस रौ छोरौ डोकरी नै देख’र चमक’र रोवण लाग्यौ। छोरै नै रोतां देख’र पुसबा डोकरी रै सांम्हौ जोयौ। मन में विचार्‌यौ डोकरी कीं रिपिया-पईसा मांगण नै आई हुसी। घर-धणी घणा दो’रा कमावै। रिपिया किसा रस्ता में पड़्या लाधै है, बाई ! सुर में थोड़ी खीज भर’र कैयौ “कांई कैवै है, धा !”

समधा चिटियै रै सहारै ऊभौ हुय’र हाथ हिलाय ओळभौ देती थकी बोली “हां अे बाला, थूं तौ माथै हाथ फेरावण नै कोन आई अे ! सासरै जाती नै मिजाज आयौ बाई थनै तौ।” कैवतां कैवतां सुर गळगळौ हुयग्यौ। आंख्यां रा कोयां में कोड सूं आलास छायग्यौ। पोपलै मूंढै सूं हंसती-हंसती घणै कोड सूं लायोड़ौ बटकौ सांम्हौ कियौ।

पुसबा देख्यौ, लाल तापेटै रौ बैंत भर्‌यौ बटकौ। अैड़ौ हळकौ कपड़ौ फेर कुण पैरैली..? आज रै सुख में लारला दुख रा दिन किणनै याद रैवै..? डोकरी रै कोड नै धन बावळी पुसबा कोनी परख सकी। उणरौ दोस कांई, पीसावाळां री दीठ में हर अेक बसत रौ मोल पीसां सूं आंकीजै। पुसबा री दीठ में बैंत कपड़ै री कीमत आठ आनां सूं बेसी अेक पीसौ कोनी ही अर माथै मण भर्‌यौ पहाड़ हरनाथा ! थारी छोरी नै आवै जितरी बार कांचळी देयनै भेजूं !

रूखै सुर सूं कैयौ “हमैं इणनै लायनै क्यूं तकलीफ देखी धा ! म्हारै अठै तापेटौ कुण पैरैलौ..?”

डोकरी रै कानां में जाणै उकळतौ तेल पड़्यौ ! भावना रै गिगनां सूं हेठी ठोकीज बा चितबंगी हुवै ज्यूं हुयगी। उणनै अैसास हुयौ, वा गरीब है, उणनै सावजोग कपड़ौ कोनी जुड़ै। पुसबा जैड़ी अमीर घर री बहू नै बैंत कांचळी देवण रौ उणनै कोई हक कोनी !

समधा रा पग चिपग्या। पाखाण-पूतळी हुवै ज्यूं वा बठै ईज ऊभी रही, ईश्वर रै मांड्योड़ै व्यंग्य चितराम ज्यूं..!

स्रोत
  • पोथी : साहित्य-सुजस (भाग -1) ,
  • सिरजक : रामेश्वरदयाल श्रीमाळी ,
  • संपादक : डॉ. श्रीमती प्रकाश अमरावत ,
  • प्रकाशक : माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान, अजमेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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