गळी जिसी गळी। लोगां जिसा लोग। आदतां जिसी आदतां। बासती पड़ी होवै तौ माथै आली घास न्हांखणी। सावळ बळै तौ लोगां रौ जी सो’रौ होवै अर किणी रौ जी सो’रौ आपां सूं देखीजै कोनी! इण खातर धूंवौ करणौ आपां रौ धरम। धूंवै सूं धांसी आवै। आंख्यां में पांणी आवै। बळत लागै। गळै में खरास लगावै। सो’कीं देख’र आपां नैं मजौ आवै।

गांव-गळी में अेकाध रंडवौ तौ होया करै। इण गळी में अेक रंडवौ। लारलै दिनां लुगाई मरगी। दो महीनां नीठ होया। मूंडागै सीयाळौ आवतौ देख’र इण रै मन में लुगाई लावण रौ कोड जाग्यौ। मिनख रै मन में जाग्या करै! आपां रै अठै फगत लुगाई पाछी नीं परणीज सकै। मिनख नैं तौ खास हक मिल्योड़ा है। वो तौ पैली लुगाई रै दाग माथै दूजी लुगाई ला सकै। पण थोड़ौ धीजै वाळौ। दो महीनां खटाव कर लियौ।

इण आदमी रौ नांव जगन्नाथ। गळी वाळा जग्गूड़ौ कैवै। आजकाळै नूंवी लुगाई खातर उणरै लाळां पड़ै अर पछै लोग बात सूं कीकर टळै? क्यूंकै गळी जिसी गळी। लोगां जिसा लोग। आदतां जिसी आदतां। बासती पड़ी होवै तौ आली घास तौ न्हांखणी पड़ै।

“तैं सुण्यौ?”

“कांई?”

“जगन्नाथ नूंवी लुगाई लावैलौ।”

“नीं रै...!”

“नीं रै क्यांरी... सोळै आनां खरी बात!”

“मांनणी में तौ कोनी आवै।”

“क्यूं, कोई नुंवादी बात है कांई?”

“नुंवादी तौ कोनी, पण...।”

“पण पछै क्यांरी...?”

“सावत्री नैं मरी नै हाल दो महीनां कोनी होया।”

“तौ कांई होयौ?”

“बात ओपती कोनी लागै?”

“ओपती-बेओपती कुण देखी, आगलै नैं लुगाई री जरूरत, ब्याव तौ करैलौ ई!”

“तौ कीं तौ मिनखपणौ होवै? हाल तौ सावत्री री राख कोनी ठरी।”

“अबै परणीज्यां सावळ ठरैला! मूंडागै सीयाळौ। सीयाळौ सावत्री री राख वाळी गरमास सूं कोनी कटै।”

“इसौ पछै कांई सीयाळौ? कीं तौ उमर देखणी चाइजै।”

“पैंतीस बरसां में जूंण पूरी कोनी होवै।”

“बीस बरसां रौ सागौ, दो महीनां में गयौ गत्तां सूं!”

“म्हैं किसी फालतू बातां में अळूझग्यौ। खास बात तौ बतायी कोनी तैं?”

“तूं पूछी कद ही?”

“लै, अबै पूछ लूं।”

“पूछ, अबार बतावूं।”

“ब्याव कठै पक्कौ होयौ?”

“धूड़जी री पोती सागै। गिरधारी री बेटी है नीं भायला?”

“संतूड़ी?”

“हांऽ, वा संतूड़ी।”

“बापड़ी बिना मां री छोरी!”

“पण भायला, म्हैं सोचूं कै उणरी मां जीवती होवती तौ सागी सांग होवतौ।”

“नीं रै! मां रौ जीव दूजौ होवै।”

“बाप कुण-सो कसाई होवै?”

“कसाई तौ कोनी होवै, पण...।”

“पण पछै क्यांरी। ब्याव मां होयां कोनी सजै। अैढौ तौ पीसां सूं सजै लाडी।”

“अर पीसौ आं कनै कोनी।”

“इणी खातर तौ कैवूं। मां जीवती होवती तौ सागी सांग होवतौ।”

“पण इण जग्गूड़ै री अक्कल माथै भाठा किंयां पड़्या?”

“क्यूं, भाठा पड़ण री कांई बात?”

“क्यूं किणी कंवारी छोरी रौ जमारौ बिगाड़ै?”

“ब्याव होयां आगै किणी रौ जमारौ बिगड़्यौ होवैला?”

“वा बापड़ी चवदै बरसां री नीठ, अर पैंतीसां पार।”

“मरद री उमर कोनी देखीजै।”

“अबार नईं देखौ तौ ना देखौ, पण दस बरसां पछै तौ उमर मत्तैई निगै जासी। पछै उण बगत...?”

“इण सूं तौ चोखौ हौ किणी विधवा नैं नातै लेय आवतौ।”

“हां ऽ, थारौ कैवणौ है तौ ठीक, पण...।

“विधवा नैं गळै कुण बांधै?”

“जीम्योड़ी थाळी में कुण जीमै?”

“बोदा जूता कुण पैरै?”

“अैंठ्योड़ै कप में कुण पीवै?”

“अर वो फेर मूंढै आगै अैंठ्योड़ौ? ठा नईं होवै तौ कोई बात कोनी। आंख्यां दीखती माखी किंयां गिटीजै?”

“आ बात कोनी। तौ गयौ हौ बात करण नै। वा है नीं राधा मास्टरणी, पण उण ना कर दी।”

“गैली बळै दीखै रांड!”

“कीं तौ भोगना फोड़णा हा कै दोनां सारू सावळ रैवतौ!”

“दोनां रा टापरा पाछा बंध जावता।”

“पण म्हारी समझ में कोनी आयी कै वा नटी क्यूं?”

“वा कैयौ बतावै कै जग्गूड़ै रै टाबर घणा है।”

“घणा पछै कुण-सा सौ-पचास है। पांच तौ टाबर है।”

“पांच टींगर थोड़ा कोनी होवै?”

“तौ कुण-सा घणा होवै?”

“आज रै जमांनै घणा है!”

“हां भाईड़ा! आजकालै तौ दो-तीन सूं बता टाबर कोनी पोसावै।”

“इणी खातर वा त्यार कोनी होई होवैला?”

“म्हैं कुण-सो कूड़ बोलूं?”

“अरे, तौ बता, उण मास्टरणी रै कित्ती’क रेजगी है!”

“उणरै रेजगी खिंडी कोनी!”

“भगवांन भली करी!”

“पण वीं नैं अबै रेजगी चाइजै।”

“नीं रै...।”

“मां री सौगन, वीं नैं चाइजै!”

“तौ पछै जग्गूड़ै नैं नटी क्यूं?”

“जग्गूड़ै रै टाबर कोनी हौ सकै!”

“हां रै, इण तौ लारलै बरस नसबंदी करवाली ही नीं।”

“सांची कैवै?”

“थूं कुणसै गांव में बसै? सगळै मुलक नैं ठा है!”

“जणां तौ सरासर जुलम है।”

“कांई जुलम?”

“जग्गूड़ै रौ संतूड़ी नैं लावणौ।”

“क्यूं?”

“संतूड़ी नैं टाबर चाइजैला अर नाजोगौ है!”

“आगली रै टाबरां नैं आपरा समझ’र परोट लेसी।”

“हां भायला! टाबर है तौ छोटा ई। हिळ जासी। वांनैं मां मिळ जासी अर जग्गूड़ै नैं लाडी।”

“आगली रा भलांई कित्ता होवौ। खुद री कूख रा टाबर तौ खुद रा होवै।”

“अबै नरक नईं भुगत्यौ सही।”

“नरक किंयां? लुगाई खातर मां बणणौ लाजमी।”

“हां ऽ, मां होवणौ तौ लाजमी।”

“बांझड़ी रा तौ दरसण खोटा!”

“दरसण? अरे बांझड़ी रौ तौ गळी में वासौ खोटौ!”

“आपां क्यूं दूबळा होवां? आपां नैं कांई?”

“गळी में गळत कांम होवै अर आपां बोला रैवां, कठै रौ मिनखपणौ?”

“बात तौ थारी ठीक है!”

“पुलिस में रिपोट कर्‌यां ब्याव रुक सकै।”

“छोरी नाबालिग है... मां-बायरी है।”

“छोरी रै मांमै नैं कैवां तौ किसो’क रैवै?”

“हां ऽ, वो है तौ चलतौ पुरजौ। अन्याव ढाब सकै।”

“आवौ, आपां उणरै मांमै कनैं चालां!”

गळी रा लोग। लोगां रा मूंढा। मूंढां में जीभां। जीभां में जहर। बीनणी रौ मांमौ। मांमै रा कांन। कांन काचा। जहर भर्‌योड़ी जीभां। काचा कांन। घुमावदार बातां में सवाल सवाल। सवालां रा उथळा। उथळां पछै फेर सवाल। फेर उथळा। फेर सवाल। अबै सोचां तौ आंख्यां आगै अंधारौ अंधारौ! म्हैं जुलम नीं होवण दूं! अेक चिरळाटी! पगां में बिजळी! डील में आंधी। आंख्यां में लाय। मूंढै में गाळ्यां रा बोफणिया भाठा।

“संतूड़ी... अै संतूड़ी!”

“कुण है... कुण?”

“म्हैं थारौ मांमौ। थूं मांय कांई करै?”

“बैठी हूं।”

“थारौ बाप कठै?”

“जीसा हेठै है।”

“ऊपर हेलौ पाड़ उण कमीण नैं।”

“थे अठै राड़ करण नै आया हौ कांई?”

“म्हारै सूं फालतू रा जीभाटा ना कर। हेलौ पाड़ उण हरांमी नैं।”

“जीसा, जीसा!”

“अरे, थे अबार किंयां आया?”

“थां सूं पांनौ पड़्यौ जणां।”

“कांई बात है?”

“छोरी रा भाग क्यूं फोड़ौ! जाणता थकां खाडै में क्यूं न्हांखौ?”

“हाथ तौ पीळा करणा पड़ै!”

“पण थे तौ काळा करण री तेवड़ी हौ।”

“थे आवळ-कावळ ना बोलौ।”

“कांई कर लेसौ म्हारौ? कीं नव री तेरह करणी होवै तौ कर दिखावौ।”

“म्हैं क्यांरी नव री तेरह करूं। गरीब-गुजारौ करूं म्हारौ।”

“गरीब-गुजारौ करौ अर भलांई म्हारै भांवै अेस! म्हैं ब्याव कोनी होवण दूं”।

“ब्याव तौ होवैला।”

“म्हारी ल्हास माथै होवैला।”

“आ थांरी ज्यादती है।”

“म्हैं म्हारी भांणकी रौ जीवण नरक कोनी देखणौ चावूं।”

“घर बसण दो’क नीं। हाथ जोडूं थांनैं।”

“म्हैं थांनैं अेक बात कैय दी नीं, ब्याव कोनी होवण दूं।”

“धीजै सूं सोचौ!”

“सोच लियौ। दूजवर नैं कोनी देवणी।”

“तौ पछै ठीक है। इत्तौ गुमेज है तौ दूजौ वर सोध लावौ। म्हनैं तौ इणी सावै ब्याव करणौ है। तेल-हळदी चढ्योड़ी म्हारी छोरी कुंवारी कोनी रैवै। बात कांन खोल’र सुणलौ। समझ्या!”

“इत्ता बरस घर में खटायी तौ अबै कुण-सी दो-च्यार महीनां और कोनी खटावै?”

“नीं, अबै च्यार दिन कोनी खटावै। काल रै सावै ब्याव होवैला।”

“आज म्हारी बैन होवती तौ...?”

“अेढौ बातां सूं कोनी सजै, समझ्या। थांनैं भांणजी री इत्ती चिंता होवै तौ काल तांई दूजौ वर सोध लाया। नींतर अै हाथ इणी सावै पीळा होवैला। म्हनैं दो छोर्‌यां और परणावणी है हाल। आप अठै सूं पधारौ।”

“जावूं हूं, पण याद राख्या, ब्याव तौ म्हैं मर्‌यां कोनी होवण देवूंला!”

खोज दाब’र पाछा बावड़िया केई जणा। वां कनैं अेकाअेक खबर। आंख दीठ गवाह। जिकौ कीं नी होयौ, वो तकात जांणै! अै बता सकै कै आगै कांई होवैला। दूजां रौ भलौ चावणिया आय पूग्या।

“थांरौ साळौ थांणै गयौ है।”

“थां कणां देख्यौ?”

“अबार मिल्यौ हौ म्हनैं।”

“कांई कैवै हौ?”

“कैवतौ कै रिपोर्ट लिखा’र आयौ हूं।”

“कांई लिखवायौ?”

“कै ब्याव जोरांमरदी है। छोरी अंगै त्यार कोनी।”

“कूड़ां रौ स्रीपूत कठैई रौ!”

“आ न्यारी लिखवायी कै छोरी बारह बरसां री अर बींद चाळीस रौ।”

“इसा कोढियां नैं रांम कोनी मारै!”

“म्हैं चालूं। थे थोड़ा सावचेत रैया। अर हां ऽ, आपणी बायली नैं समझा दिया कै कोई पूछताछ सारू आवै तौ खुद नैं सोळै बरसां री बतावै। कैवै कै ब्याव सारू राजी हूं। किणी भांत री जोरांमरदी कोनी। समझ्या! बिंयां तौ पुलिस में आपांरी सैंध-पिछांण है। जरूरत पड़्यां कीं कीं उपाय करांला ई। पण रांम करै जरूरत क्यूं पड़ै? थांणै अर अस्पताळ रा तौ दरसण खोटा!”

“थांरौ कैवणौ वाजिब है!”

“थे बायली नैं सावळ समझा दिया, भलौ! नीं होवै कै आपां तौ उणरै भलै नैं करां अर वा खुद नट परी’र आपां नैं टंटै में पजाय देवै!”

“आ कदैई होवै?”

“बळती बाजै भाई। सावचेती राखण में कांई हरज?”

“आ बात तौ है ई। म्हैं अबार उणनैं समझाय देस्यूं।”

“ठीक है। म्हैं चालूं। सावचेत रैया।”

“ठीक है सा, भगवांन भलौ करै थांरौ!”

गळी में मांमौ। मांमै सागै पुलिस। पुलिस पूगतां घर में रोवा-कूकौ। गाळ्यां। करमां

रौ रोवणौ। भगवांन नैं अरदास-परसाद। देवी-देवतावां रा बोलवा।

गळी में खळबळ। केई उणियारा आप-आपरा घरां आगै। केई डागळां सूं गळी में देखै। केई घरां सूं बारै। केई फुटपाथ माथै। अेक नैं देख’र दूजौ आवै। दूजै नैं देख’र तीजौ। तीजै नैं देख’र चौथौ।

“अबै ठा पड़सी भाईजी नैं...।

“कोई चोरी करी कांई आगलै, जिकौ ठा पड़सी।”

“अै फेरा तौ राजी-बाजी रा!”

“जे छोरी नटगी तौ...?”

“छोरी नैं जीवणौ कोनी कांई?

“आ बात तौ बेजां।

“ओ चाळीस रौ, छोरी चवदै री।”

“चाळीस रौ कठै, क्यूं कूड़ बोलै?”

“पैंतीस में तौ गोळ कोनी।”

“रांमूड़ै सूं कित्तौ’क बडौ है?”

“अेड़ै-गेड़ै है।”

“रांमूड़ौ तौ तीस रौ है।”

“जणां पैंतीस रौ कठै सूं होयग्यौ!”

“तौ भायला, पांच टाबरां रौ बाप तौ है ई!”

“टाबर तौ पांच कांई सात होय जावै इण उमर तांई। आपणै अठै तौ ऊगतां नैं परणाय देवै!”

“पण तौ छोरी तौ छोटी, तौ मांनणी पड़सी।”

“थारौ माथौ छोटी! अठारै सूं ऊपर बळै!”

“सुणी है, डागदरी जांच होवैला?”

“जांच डागदर करै कै डागदरणी?”

“डागदरणी करती होवैला।”

“डागदर करै तौ किसी डरण वाळी है!”

“दोलड़ै हाडां री है।”

“पैर्‌योड़ी-ओढ्योड़ी होवै तौ दो टाबरां री मां लागै।”

“लागौ भलांई। मां होवण रा तौ सपना लेसी।”

“घणौ कोड होसी तौ पाड़ोस्यां नैं बकार लेसी।”

“हां ऽ, पाड़ोसी किसा मरग्या?”

“हीं-हीं-हीं!”

“हें-हें-हें!”

“पुन्न रौ कांम करण नै तौ म्हैं त्यार हूं।”

“म्हारै थकां ई?”

“थूं म्हारै सूं न्यारौ कद? थूं पैली, म्हैं पछै।”

“जीवतौ रह थूं!”

“अरे, थूं कांई सुणै? जा देख’र तौ आ, वांरै घरां कांई सांग है?”

“अबार जावूं।”

“गिरधारी रौ मन किंयां मांनग्यौ दूजवर नैं बेटी देवण सार।”

“आगै भूवाजी भंवै, कांई करै बापड़ौ!”

“म्हैं तौ सुणी कै वो दो हजार सांम्हा लिया है।”

“ओ तौ बेटी नैं बेचणौ होयग्यौ।”

“इंयां तौ धरती रौ बोझ बधै। बाप होय’र बेटी नैं बेचै!”

“बाप क्यांरौ, कसाई है!”

“हाल तौ दो छोर्‌यां और बैठी है।”

“सुण्यौ कै बडोड़ी पाछी घरां आयगी।”

“सासरै वाळां काढ दी कांई?”

“छोरै छोड दी।”

“छोरी रै टाबर-टींगर है कै नीं?”

“अबै कठै? अेक छोरौ होयौ, जिकौ चालतौ रैयौ!”

“ऊपर वाळै री मरजी!”

“मौत माथै मिनख रौ कांई जोर?”

“थनैं कीं तौ ठा है, क्यूं छोडी?”

“छोरी रौ चाल-चलण कीं...।”

“गिरधारी रा टाबर इसा कोनी।”

“अठै कांई, टाळ सही! म्हैं तौ सुणी जिसी कैवूं।”

“लुगाई रौ चरित अर मिनख रौ भाग तौ भगवांन कोनी जांणै, थूं-म्हैं किसै खेत री मूळी!”

“किण सूं लाग्योड़ी ही?”

“काकै सूं!”

“लिच्छूड़ै सागै?”

“हां ऽ!”

“लिच्छूड़ौ तौ इसौ रुळियार। डाकण अेक घर टाळै, पण वो नीं!”

“पोत चवड़ै कीकर आया?”

“अै पाप ढक्यां कित्ता’क दिन रैवै?”

“लो, सन्नूड़ौ आयग्यौ।”

“कांई खबर लायौ रे?”

“थांणैदार छोरी सूं बात करग्यौ।”

“अच्छा!”

“च्यार-पांच गदीड़ चेप्या होवैला?”

“वो दकाल देय’र जीव काढ देवै!”

“संतूड़ी तौ लैंगौ भर दियौ होवैला?”

“हीं-हीं-हीं!”

“दांत क्यूं काढौ? लैंगौ धोवण नैं थांनैं बुलाया है। पण पैली पूरी बात तौ सुणौ।”

“थूं कांई हुंसियारी छांटै। बेगो-सी’क कैवै बाळै नीं!”

“थांणैदार पूछ्यौ—माडांणी परणीजै कै मरजी सूं! संतूड़ी कैयौ—मरजी सूं। किणी री दबेलदारी नीं!”

“आ बात कैयी?”

“हां ऽ, बिलकुल ई’ज बात कैयी।”

“छोरी क्यांरी, दादी है, दादी!”

“आजकाल री छोर्‌यां दादी होय’र जलमै।”

“छोरी निकळी हिम्मतवाळी!”

“जग्गू मास्टर नैं फेंफ्यां अणा देसी।”

“आ लखणां तौ लागै।”

“जणां तौ फेरा आज होवैला?”

“आज नईं तौ काल, लाडौ लाडी तौ ले जावैलौ ई!”

“मांमै फालतू माथाकूटी करी।”

“भूंड रौ ठीकरौ आवणौ होवै जणा इंयां आया करै।”

“अेकर तौ बिघन घाल दियौ।”

“अबै वीं रौ माजनौ हळकौ होयौ।”

“कोसिस करी आगलै। पार नीं पड़ी तौ नीं सरी!”

“नीच है सा’ळौ!”

“और नीं तौ कांई? इत्ती भागा-दौड़ी करी अर ब्याव कोनी ढब्यौ?”

“वीं बगत तौ इत्ती हैन-तैन करै हौ, कांई खांगौ कर लियौ?”

“छाछ दांई मूंढौ लियां कठैई पड़्यौ होवैला!”

“गुटकौ लेय’र आपरी लुगाई रै घाघरै कनैं बैठौ रोवतौ होवैला।”

“अबै च्यार दिनां तांई तौ घर सूं बारै मूंढौ काढै कोनी।”

“म्हनैं मिलण दे, माजनौ भांडूंला!”

“दो धोबा धूड़ म्हारै नांव री न्हांख्यै!”

“दो म्हारै नांव री ना भूली।”

“दो म्हारी याद राखजै!”

जगन्नाथ रौ घर। घर में संतूड़ी। टाबर सोचै—मां मिळगी। जगन्नाथ सोचै—अबै सीयाळौ सो’रौ निसरैला!”

गळी में न्यारा-न्यारा लोग। न्यारा-न्यारा बिचार। कोई कैवै—बापड़ै रौ टापरौ बंधग्यौ। कोई कैवै—टाबर बापड़ा नरकवाड़ौ भुगतैला। माई-मां टाबरां नैं कद परोट्या!

इतिहास देखलौ!

गळी रा लोग। लोगां रै मन में इतिहास जाणण री हूंस। हूंस सूं उपज्योड़ौ हेत अर हेत रै खेत में जगन्नाथ रा टाबर।

“अरे मनूड़ा!

“कांई?”

“अठी आवै कनीं।”

“ले, चॉकलेट खा।”

“नूंवी मां थांरौ लाड राखै कै नीं?”

“राखै।”

“थांनैं फलका लूखा देवै कै चोपड़्योड़ा?”

“चोपड़्योड़ा।”

“साची कैवै है नीं?”

“म्हैं कूड़ क्यूं बोलसूं?”

“थांनैं कूटै तौ कोनी?”

“ऊ हूं ऽ।”

“बकती तौ होवैला?”

“नईं तौ!”

“मनूड़ा!”

“कांई?”

“थूं कठै सोवै रे?”

“म्हारै भाई-बैनां कनैं।”

“मां कनैं कोनी सोवै कांई रे?”

“ऊं हूं ऽऽ!”

“थांरा कपड़ा कुण धोवै?”

“नूंवी मां!”

“कूड़ क्यूं बोलै रे! काल म्हैं थनैं देख्यौ हौ डागळै सूं। थूं कपड़ा धोवै हौ रे...।”

“मां नैं ताव चढ्योड़ौ हौ।”

“ताव चढ्योड़ौ हौ?”

“हां ऽऽ!”

“सुण्यौ, संतूड़ी नैं ताव चढण लाग्यौ है।”

“हीं-हीं-हीं!”

“हें-हें-हें!”

“थूं जा लाडी रम। लै, अेक चॉकलेट वळै।”

“देख संतूड़ी रा मजा। ताव रौ मिस कर’र टींगरां कनैं सूं कपड़ा धोवावै!”

“थोड़ा दिन ठैर लाडी। रोट्यां करवासी अर भांडा मंजवासी।”

“जग्गूड़ौ संतूड़ी रौ लाड तौ खासौ राखै।”

“दिनूगै टूंटी माथै पांणी भरै हौ।”

“हीं-हीं-हीं!”

“हें-हें-हें!”

सुणौ भाई बांचणियां!

सगळै सावत्री अर सगळै हीं-हीं-हीं-हें-हें! कठै जावै अर कांई करै? बापड़ी जीवै कै मरै? इणनैं परणीजै तौ धयौ, उणनैं परणीजै तौ धयौ। अर नीं परणीजै तौ धयौ। क्यूंकै ठौड़-ठौड़, गळी जिसी गळी। थां-म्हां जिसा लोग। आदतां जिसी आदतां। बासती पड़ी होवै तौ माथै आली घास तौ न्हांखणी पड़ै!

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : सांवर दइया ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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