अेक बारहठजी रै घरै पांवणौ आयौ। बारहठजी नै बातां रा गडका तौ घणा ई आवता हा। पांवणा रौ आव-आदर करता कैवण लागा— मेह अर पांवणा तौ आयोड़ा ई आछा। कीकर पधारणौ व्हियौ? मारग पांतरग्या कांईं?
पांवणै कह्यौ— आपरा दरसण करण सारू।
बारहठजी बोल्या— अै तौ दरसणां साटै दरसण है। कोई कांम-काज व्है तौ फरमावौ।
बारहठजी घर सूं थाकल हा। नीठ आपरौ गुजरांण करता। पण गांव में पूरौ ठरकौ जमियोड़ौ हौ। लोगां सूं रसूकात आछा हा। बस्ती रा सगळा बारहठजी रौ मांन राखता। पांवणा नै कोटड़ी में सावळ बिठांणनै बारहठजी वळाका माथै निकळिया। पांवणा रै सिरावण सारू कठा सूं ईं दूध मांगियौ, कठा सूं घी अर खांड रौ संज बिठायौ।
लांठी तासळी में दुळ-दुळतौ दूध भरनै लाया। दूध माथै निसैवार गावा घी रौ तिरवाळौ हौ। नीचै जमियोड़ी खांड नै आंगळी सूं रळावता बोल्या— लौ अरोगौ।
पांवणौ बारहठजी रौ ओसांण जतावतां कह्यौ— आप तौ घणी तकलीफ करी। अैड़ी सरबरा तौ मोटा-मोटा ठिकांणा में ईं बण नीं आवै।
बारहठजी रै घणी लाग-लपेट नीं ही। चोज राखण रौ वांरौ सुभाव नीं हौ। बोल्या इण सरबरा में अपांरी तौ फगत आ आंगळी है। औसांण तौ है जकां रौ ई है।