दिन री सरूवात ही म्हारै वास्तै चाय सूं व्हैती.. इण कीं खास नुवीं वात तौ है कोनी। पण जिण दिन अखबार कोनी आवतौ चाय बेस्वाद व्है जावती। अखबार भणवा को भी म्हारौ अलग ही तरीकौ अेक हाथ में चाय रो कप व्हैतो तो दूजा हाथ सूं अखबार रा पन्ना पळैटती। सबसूं पैलां म्हैं पेज नम्बर दो पै बिजळी री खबर देखती, जै म्हारै मोहल्ला रो नावं व्हैतो तो सगळां ई कारज भूल नै मोबाईल चार्ज लगावती, आर ओ, गीजर अर इस्त्री रा गाभा देख लेवती। आ खबर देख्यां पछै म्हैं स्हैर में होवण वाळा कार्यक्रम पै निजर न्हाक देवती। पछै म्हैं अखबार रै दूजां पान्ना नै देखती। सोक संदैस देखवा री म्हारी आदत ही। अेक-अेक उणियारौं अर नांव पता देखती।
आज अेक फोटूं नै देख’र म्हारी चाय रौ कप पड़तौ-पड़तौ वंच्यौ। ओ तो आखौ अमर हो। नांव पता देख्या तो म्हारी आंख्यां सूं आंसू टपकण लागा अर म्हैं पाछलै चाळीस बरसां पाछै जाय पौंची। कांनड़ै मीठी आवाज पड़ै ही –
“जीजी..! अे जीजी!” अेक नानी’क टाबरी घाट रा पंगत्यां उतरती म्हारै कनी आवै ही। म्हैं लाल भाटा सूं अेड़ियां रगड़ै ही तौ नेड़ै ही म्हारी साथण ‘दिल वाले दुल्हनियाँ ले जायेंगे’ फिल्म रौ गाणौ गावती गाभां पै साबुन री बट्टी घिसै ही। म्हैं गाबड़ उंची करी। घाट पै तौ केई छौरियां सांपड़ै ही राम जाणै आ किणनै बुलावै ही। म्हैं पाछी गाबड़ हेटै करी अर आपरा काम में लागगी।
“ओ जीजी..!” वा म्हारै अेकदम नेड़ै आयगी। उणरै हाथ में अेक थैली ही। उणी थैली नै म्हारै कनी करी।
“लो पकड़ौ।”
“कांई है इण में..? किणी दियौ?” – म्हैं पूछ्यौ तौ वा न्हाटगी।
“अरै कठूं उठाय नै लावी है..? सुण अे।”
छोरी छेटी लायनै बोली – “आसमानी पैंट वाळै दी।” – कैयनै अळप-लळप व्हैगी।
म्हैं उठनै पूछूं कै कुण है ओ आसमानी पैंट वाळौ पण गाभा आला व्हैयनै सरीर रै इण भांत चिपकग्या कै उठ नै उणनै पकड़नौ सोरो काम नीं हौ।
म्हैं थैली में देख्यौ क्लिनिक प्लस सैम्पू री लड़ी। म्हैं देखनै अर हैरान रैयगी। किणी दिया व्हैला ई? कठै छोरी गलती सूं तौ म्हनैं नीं पकड़ायगी। म्हनैं हैरान देख’र गाभा पै बट्टी रगड़ती म्हारी साथण राधा बोली –
“ओय हिरोईन परेसान मत व्है, ई थारै वास्तै ईज मोकल्या।”
“हठ पगली..! गारा लाई हूं म्हैं तौ घर से ले थूं ई राख लै।”
“म्हैं राख लूं..? कमीण नै कह्यौ म्हैं तौ.. कै लाव म्हैं दे देवूंला कावेरी नै, पण म्हारै पै विसास नीं होयौ कठै म्हैं राख लूं तो।”
“ले थूं ई राख ले, पण बतावैला कै आ आसमानी पैंट कांई पहेली है..?”
“सैंग जाणता-विणता ई क्यूं नाटक करै छोरी। सारूखान मोकल्या काजोल रै वास्तै।” – सुण’र म्हैं तौ थैली जोर सूं फैंकी परी।
ओ देख’र राधा दौड़ती थैली उठा ल्यावी अर कैवण लागी – “बावळी है कांई? क्लिनिक प्लस सैम्पू रै प्रचार वाळा आया हा। छोरियां खरीदै.. म्हारै कनीं तौ रीपियां हा कोनी पणा देख अमर खरीद ल्या थारै वास्तै। सगळा नै कैवै हौ कै म्हारी मां रै वास्तै लेवूं पण म्हैं तौ जाणगी कै थारै वास्तै लैवै हौ।”
सुणनै म्हनैं तौ हंसी आयगी। “लै थूं ई राख ले। म्हनैं सौक कोनी अैड़ी चीजां रा।
“वा इत्ती भी भाटौ मत बण। राम जाणै कद सूं पाई-पाई जोड़ै हौ, मेळै जावण वास्तै अर देख सैंग थारै पै खतम कर दी। म्हारै वास्तै लेवतौ तौ म्हैं आखा गांव में सबसूं भागसाली जाणती खुद नै।” – कानड़ा में धीरै सूं केयनै वा पाछी बट्टी घिसण लागी। मैं अेक पुड़की खोली बाकी राधा रै हवालै कर द्या।
“ले थूं संभाळ म्हैं कठै छिपावती फिरूंला। मां कै भाभी देखल्या तौ लेणां-देणां पड़ जावैला।”
“पण थारा सारूख नै ठा पड़गी तौ उण सूं कुण भिड़ैला..?”
“कैय दिजै म्हैं ई कह्यौ। इत्ती फिकर न कर।”
म्हैं सांपड़ ली ही पण गाभा बदळा वास्तै म्हनै राधा री मदद लैवणी ही। गाभा पैर्यां ई पाणी में उतरणौ पड़तौ हौ। गैलै आवता-जावता लोग देखता ईज व्हैला। सबसूं मोटी परेसानी ही गांव रा अेक आध छोरा। उणां लाख ना पाड़ दी कै छोरियां रै घाट पै नीं आया करै पण व्है मानता ई कोनी हा।
कद आय जावै कीं कैय नीं सकां। पण देख्यौ जावै तौ उणारी कीं गळती भी कोनी ही। म्हां महिला मण्डल ईज तौ उणारै घाट पै जमावड़ौ कर दियौ हौ। लुगाईयां रौ घाट न्यारौ बणियोड़ौ हौ पण उण घाट पै फिसळण घणी ही तौ लुगायां दिमाग दौड़ायौ इण नुवां घाट पै कब्जौ जमावा रौ। पैलां तौ दानी-घरढ़ी लुगायां नै इण घाट पै औ कैय-कैयनै मोकलती कै अठै फिसळन घणी है कठैई पग फिसळणग्यौ तौ जीव सूं जावौला। पछै होळै-होळै दूजी लुगायां अर अबै तौ म्हां छोरियां तकात कब्जौ जमाल्यौ।
अबै आदमियां रौ घाट बणग्यौ हौ जूनौ वाळौ घाट। पण कुछेक छोरा हा जकौ मानता ई कोनी। समझार लोग उणां नै समझाव्या.. पण हा कै देखौ सगळां रै घर में बैन-बेटियां अर बहुवां है सगळां नै तैरणौ तौ आवै कोनी अर इण घाट री फिसळन ईज नीं गैराई भी उण छौर सूं इण छौर ज्यादा ही। पछै कांई नुंवो घाट महिला डिपार्टमेंट बणनै रैयग्यौ। पण कुछेक बदमास छोरा ओ घाट छोडण नै त्यार नीं। लुगायां तौ सांपड़ती रैवती पण म्हां छोरियां रै वास्तै परेसानी ही। अेक तौ आला गाभा खोलणौ ई बड़ौ मुस्किल काम हौ फेर छाती पै छोरा आय जावता तौ केई बार आलै गाभै घरां जावणौ पड़तौ। मां कैवती आलै गाभै घरां आवणौ असुभ हुवै तौ म्हैं आला पै सुखा गाभा पैर लैवती।
राधा अर म्हैं हाथ में बाल्टी उठाव्या घर कानी निकळी तौ गैला में हैण्डपम्प पै अमर पाणी पिवतौ निजर आयग्यौ। आये दिन म्हैं उणनै अठै पाणी पिवतौ देख्यौ पण कदैई गौर कोनी कर्यो पण आज सैंग खैल समझ आयग्यौ।
इतराक में राधा बोली – “देख तौ जाणै कितरी देर सूं ओ हीरौ इण डोळी पै तावड़ा में तपै है।” म्हनै राधा री बात सूं हंसी आयगी। अमर पण मुळकतौ उठै सूं चाल दियौ।
केसां में केई दिनां तांई म्हैं सैम्पू री सौरम मैसुसती री। राधा अर अमर दोनूं पाड़ौसी हा पण रैवता यूं जाणै पाछला जनम रा दुस्मण व्है। अक्सर टाबरां री गळाई लड़ता देख्या म्हैं उणां दोनूं नै।
इणां दिनां अमर में थौड़ो ठिमरपणौ वापर्यौ। काम सूं काम राखतौ। अेक दिन गांव में सर्कस आव्यौ। अमर तीन टिकीट खरीद ल्याव्यौ। दो उणी राधा नै दिया अर अेक खुद राखल्यौ। म्हां तीनूं सर्कस देखण जाव्या। उठै रैय-रैयनै ‘दिल वाले दुल्हनियाँ ले जायेंगे।’ गाणौ चालै हौ। अमर रा दोस्त उणनै छेड़ै हा कै व्है न च्है औ गाणौ रीपियां दैयनै उणी’ज लगवाया व्हैला।
आज उणी आसमानी पैंट पैर राखी ही। अेकदम नुंवी तौ नीं कैय सकां पण हां जूनी पण कोनी ही। भीड़ सूं निकळती वैळा म्हैं पूछ्या –
“पैंट कहां से लाये..?”
वौ मुळक नै बोल्यौ, – “कैड़ी लागी आ बता थूं तौ?”
“वोकई सारूख लगै।” – म्हैं आंख्यां जमीं में धंसावती कह्यौ।
“थूं पण काजोल सूं कम कोनी हौ। भले इण फिटकरी सूं फूंछ लौ। राधा कनीं देखतै उणी कह्यौ। तौ राधा पग पटकती उठै सूं आगै निकळगी। पण जाणै कीं सोच नै वा पाछी मुड़ी अर कैवण लागी – “म्हैं फिटकरी हूं नीं तौ तूं ई चाख मजौ अबै।”
“कावेरी सुण तौ आ पैंट इणनै अेक टरक वाळै दी। कीं नुवीं कोनी, अेक-आध वार पैर भी राखी व्हैला। छी…। सोच्यौ कै कोनी बतावूंला कावेरी नै पण औ तौ म्हनै फिटकरी कैवै।”
अमर कैवण लागौ – “आ तौ बाळपणां सूं ई अैड़ी है फिटोळ। अब सोच किंयां रैवतौ व्हूंला म्हैं इणरै पाड़ौस में।”
“म्हनै तौ थां दोनूं अेक जैड़ा लागौ। वा आगै निकळ जावैला किरोध करती। म्हैं तौ चाली।”
“अरे सांभळ..!”
“बोल झट..!”
“थूं तळाव पै मत सांपड़्या कर। कितौ’क पाणी च्हावै थारै सांपड़वा में…दो घड़ा। भरल्याव इण फिटकरी साथै जायनै।”
“ठीक है फेर बात करस्यां अबार जावूं राधा आगै निकळगी अर मां नै ठा पड़गी कै अेकली आवी हूं तौ म्हारी खैर नीं।”
म्हैं दो पांवडा भर्या कै राधा दिखगी तम्बू री आळखै छिप्यौड़ी। म्हैं मुळक दी – “म्हारी पक्की साथण है इयां किंयां अेकली छोड़ जावै।”
गेलै चालती राधा बोली – “कावेरी काल-परसों में रिजल्ट आवण वाळौ है ठा है कोनीं..?”
“हां।”
तीजै दिन री सुबै म्हैं तौ बिछौणौ ई कोनी छोड्यो हौ कै म्हारै कानड़ै आवाज पडी – “देख थारी छोरी फर्स्ट डिविजन पास हुवी। उण राधकी सूं दूरां रैवती अर मैणत करती तौ इणरी मैरीत तौ तै ही।” – भाई मां नै कैवै हौ।
मैं झट उठगी। थौड़ी देर में राधा आव रै परी। म्हनै बधाई देवती बोली – “म्हारी अर थारा सारूख री नावां तौ डूबगी। पण म्हनै बोत खुसी है थूं फर्स्ट आवी।”
पछै म्हनै बारै निकळवा रौ इसारौ कर्यो मां अर भाभी नेड़ै ही बैठी ही। म्हैं उणरै सागै बारै आयगी। राधा बोली – “देख थारौ सारूख नकी बावळौ व्हैगौ भेरूंजी रै नारैळ बधार आयौ अर सबनै प्रसाद ईज नी मिठाई पण बांटै।”
“अरे..! पण क्यूं?”
“दूजां नै कांई कैवै राम जाणै पण म्हनै तौ औ कह्यौ कै म्हारी काजोल पास व्हैगी। अर मिठाई रा रीपिया पण अेक सप्ताह सूं पैलां जोड़ लिया बदमास।”
“देख वो आवै।”
अमर नेड़ै आयनै मिठाई रौ डाब्बौ राधा नै पकड़ाद्यो। म्हारी साम्हीं देख अर बोल्यौ यूं ईज मन लगाय नै भणजै म्हैं आज ई मुंबई निकळ जावूंला म्हारा बापू नै ठा पड़ै म्हारै परिणाम री उणसूं पैलां। पण थूं फिकर मत करीजै म्हारै साथै किलास रा ओजूं गोठी है। मुम्बई में म्हारै मामा रौ ढाबौ है उठै काम करूंला। उणरी आंख्यां भींजगी ही। म्हैं कीं बोलूं उणसूं पैली वौ उठै सूं चालतौ बणियौ।
समै कठैई निकळग्यौ म्हैं भणाई रै पछै म्हारी गिरस्थी में उळझगी। औकै-मौकै कदैई वौ दिख्यौ पण बात कोनी कर सकी। सोचतां-सोचतां म्हारी आंख्यां सूं दड़क-दड़क आंसू पड़वा लागा जिणसूं अखबार रा पान्ना भीजै हा।