दो तीन साल तक लगतै सांवणू खेती में बोरगत नीं व्हैती देखी तौ अेक करसौ ऊनाळू साख सारू चौथा वांटा में ठाकर रौ बेरौ करियौ। सित्तर हाथ ऊंडौ झेलवौ बेरौ। चार जोड़ियां बिना ताबै आवणौ दोरौ। इण खातर करसौ बोहरा कनां सूं माथै रिपिया लिया। जांणियौ साख माथै सगळी फारगती कर देवसी। पैल फटकारै पूरौ खातौ वाळण सारू करसौ सगळा जाव में मिरचां करी। कैणा में तौ ठाकर रौ बांटौ चौथौ हौ, पण रोजीना री मांगा-तांगी में के आज फलांणजी रै मिरचां भेजणी, आज ढींकड़जी रै अर आज पूंछड़जी रै, यूं करनै सगळौ वांटौ आधा सूं ईं करड़ौ पड़ियौ। दूबळा नै सौ दोखा। कीं मिरचां में रोग व्हैगौ, कीं दावा री झपट लागगी, कीं ठाकर री गिरै अर कीं भाव धापनै मोळौ रै’गौ। करसौ तौ लै’णा में साव कळग्यौ। भूंडै ढाकै पैड़ग्यौ।

रिपियां में जोखौ राखणियौ, अैड़ौ भोळौ बांणियौ कोनीं हौ। करसा री च्यारूं जोड़ियां, थोड़ौ घणौ गैणौ-गांठौ, वित्त-मवेसी, कपड़ा लत्ता, बरतन-बासण सूं कांम नीं सरियौ तौ बोहरौ करसा रै डील रा गाभा उतार लिया। पोतियौ, अंगरखी अर पगरखियां धुराधुर खुलायली। फगत गोडां सूं अेक वेंत ऊंची फाटोड़ी झीर-झीर व्हियोड़ी धोती राखी। डोढ़ौ-दूणौ मंडियोड़ौ लै’णौ उतरै तौ कीकर उतरै? करसौ घणौ रोयौ, कळपियौ पण सेठजी अेक लाल-छदांम छोडण नै त्यार नीं हा।

घणी बेइज्जती अर कूटण रा डर सूं रात दो-अेक घड़ी ढळी जित्तै वौ आपरौ झूपौ छोडनै छांनै लुकतौ-छिपतौ पारसनाथ जी रा मिंदर में वड़ग्यौ। जांणियौ झांझरकै पौर रात थकां उठा सूं ठेका देय जासी। जीव रौ उकराळियोड़ौ वौ पारसनाथ जी री पूतळी रै लारै लुकग्यौ। अंधारा में पूतळी माथै सगळै दोनूं हाथ फेरिया। पूतळी साव नागी-तडंग। पूतळी रा माथा माथै हाथ फेरनै वौ होळै सूं डरतै-डरत कह्यौ—भाया, थूं दो बेरा करिया दीसै। म्हारै अेक फाटोड़ी धोतड़ी तौ है, थारै तौ वा कोनीं।

स्रोत
  • पोथी : बातां री फुलवाड़ी (भाग-1) ,
  • सिरजक : विजयदान देथा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशक एवं वितरक
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