धापू मां है। मां तौ मां ई होवै। आपरै टा बर नैं सुखी देखणौ चावै... अर सुख पण कांई? अेक चौखट में बंधी-बंधाई जिनगांणी। इसी जिनगांणी, जिकौ आदीचारा सूं है ज्यूं चालै। सनमंधां रै सै खटास रै बीच खावणौ-पीवणौ, कदैई हंसणौ-बोलणौ अर घणखर दाझणौ-खीझणौ, लड़णौ-झगड़णौ, वैर-ईसकौ, खार-विरोध। बस, आ ई सुखी जिनगांणी बाजै। इण सगळै रांझै रै बीच में कठैई नेह सूं हरख बिखेरता होठ, कठैई मांन-सम्मांन सूं आवकारौ देवता चेहरा, कठैई हेत सूं हरखावतौ नूंतौ। ज्यूं दूध रै टीपै-टीपै में माखण है, त्यूं ई संसार रै सै कारज-वौपार में सुख है। पण सुख है कठै, इणरी खबर कोनी। खूंटै सूं बंधी गाय सुखी है। हकीकत में खूंटै सूं बंधी गाय सुखी है कै नीं, इण रौ कांई तुमार? पण संसार तौ खूंटै बंधी गाय नैं सुखी ई मांनै। वत्तौ कीं नीं ई होवै, तौ बखतसर चारौ तौ मिळै! ओ तौ फगत गाय ई जांणै कै खूंटै बंध्यां चारौ चरण में सुख है कै खुलै में चरतां भूखां मरण में? पण मां नैं सास्तर दरसण री इसी बातां सूं कांई मतळब? मां नैं दाखू रै दरसण सास्तर रै तरक मुजब खरै उतरतै सुख सूं नीं, उण सुख सूं मतळब है, जिकौ मिनखां लेखै सुख बाजै।
धापू विचारै—आ दाखू गैली तौ नीं होयगी है? किणीं री कोई बात ई को सुणै नीं। इतरी मोटी होई, छतां मथारै दिन चढ्यां सुधी बोलै न चालै, कांकणियां री कवड़ियां नचावती अेक ई दिस देखती रैवै। हे गोगाजी बापजी, इण नैं सदबुध दीजौ। रांमापीर, आवती ऊजळी इग्यारस नैं थांरै थांन माथै पूग’र नारेळ परौ चढावूंला। गैला-गूंगा रा दोस निवारजै म्हारा सुगणी बाई रा वीर!”
धापूड़ी अदीठ रांमापीर कांनी देखती थकी भगती सूं हाथ जोड़’र माथौ नमावै।
“दाखूड़ी, गैली, सुणै क्यूं कोनी अै!” धापूड़ी मनवार सी’क करै।
जीवणै हाथ री आंगळ्यां सूं लालर रै आंटा देवती कांकणियां री फूंदियां नैं टकटकी लगाय निरखती दाखू मां रै कांनी निजर उपाड़’र देखै ई कोनी।
दाखू बोळी तौ है कोनी। सै कीं सुणै है। उण नैं ठाह है कै उण री हेजाळू मां उण नैं कांई कैवैला। आ मनवार किण सारू है, दाखू जांणै है। परोठ में कितरी-कितरी वार, कितरी-कितरी सानियां कर-कर’र मां आपरी बात जताय दी है।
दाखू कांई जवाब देवै, इण री ई धापू नैं खबर है।
वा तौ इण दिस रुख ई को मेळवै नीं। पछै ऊगै दिन बात नैं चटणी ज्यूं क्यूं
बांटै है मां!
दाखू आपरी ही धुन में चुपचाप रमती रैवै।
आपरै टूटोड़ै बटणां कांनी देख, पछै अळघी-कल्पना रै कांई ठा किसै कसूमल संसार में पसर’र उणरी कोडीली दीठ गम जावै।
इण कोडीलै संसार री खबर फगत उण नैं ई है। फगत दाखू नैं। समझावण वाळी मां नैं इण री कोई भणक ई कोनी। इण सारू मां रै मन में दुख रौ छेह, न पार! पण दाखू? चितबंगी लागण वाळी दाखू अबूझ आणंद रै समदर में किलोळ करै! दाखू री आ गत देख’र सिरखी सामीणीं सखियां पण गहरौ अचंभौ करै—इण उमर में इसौ वैराग! रोळ न मसखरी, हंसै न बोलै, चढतै जोबन री रित में किसी कवा लागगी है म्हांरी फूल जिसी दाखू रै!
सहेल्यां रै मन री आडी सुळझै कोनी। सेवट होयौ कांई है दाखू रै!
दूजी सिरखी-सामीणियां री तौ बात ई छोडौ, दाखू री खास हेताळ, खास मनमेळू सखियां नैं ई उण रै इण कोडीलै संसार री कोई खबर कोनी। दाखू रै मन में रच्यौ-बस्यौ है इसौ कोडीलौ संसार, जठै फगत वा है, उण रै सपनां रौ साईनौ है अर मद सूं हळाबोळ आणंद री अणथम लहरां ऊंछाळतौ बखत रौ अणमाप दरियाव है, डीघा हबोळा लेवतौ!
पण दाखू रै सपना रै सुख सूं बेखबर मां नैं संसार सूझै। वा दुखी है। कल्पना लोक में डूबी बेटी रै सुख सूं साव अजांण मां भलै दुखी होवौ, कल्पना रै सुख-समदर में लहरां लेवती बेटी धाप’र सुखी है।
अेकर चांणचक घटी अेकोअेक घटना दाखू रै मन रै परदा माथै यूं चालै, जांणै चैतरी मेळै में देख्योड़ी रंगीन फिलम चालती होवै। इसी फिलम, जकी खतम ई को होवै नीं। लगोलग चालती रैवै। ज्यूं-ज्यूं फिलम चालती रैवै, त्यूं-त्यूं दाखू रै मन रौ आणंद बधतौ जावै। इसौ आणंद, जिकौ मन में मावै नीं अर किण सूं ई कैयौ जावै नीं। इसी गुपताऊ बात घट री घट में दबावण रौ आणंद रस ज्यूं झरै। उण रस रौ सवाद बखांणीजै थोड़ौ ई है! इण अकथ आणंद रौ रस तौ जिण भोग्यौ, वो ई जांणै है।
कितरा बरस बीता, किण नैं खबर! पण कोई घणी जूंनी बात कोनी।
बैसाख में जाळ री घेर-घुमेर खांगी-बांकी डाळ्यां माथै बांदरियां ज्यूं कूदड़का मारती अर मोती जिसा पीलू चुगती दाखू रै सांवळै डील माथै चूंठियौ भर आपरी अचपळी आंख्यां रै मोटै-मोटै कोयां में रोळ री अणमावती मुळक बिखेरती थकी मेथकी रस बरसावती निजरां नांख कैयौ हौ, “अै दाखूड़ी, ओ देख, थारौ बींद।”
“छोर्यां, देखौ अै, दाखूड़ी रौ बींद।”
बाबूड़ी, पाबूड़ी, सजनां सै छोर्यां खिलखोळै चढी।
हंसी रौ अेक व्हाळौ, जांणै पूरै उमाव रै साथै ऊफांण चढियौ।
बैसाख री लू में जांणै फागण रौ बसंती फव्वारौ चाल्यौ होवै।
लू में तपियोड़ी दाखूड़ी रौ सांवळौ चै’रौ किणी अजांणी लाज सूं चूलै चढ्यै केलूड़ै ज्यूं रातौ चिट्ट दीपण लागौ।
“आघी जाऔ, नकटी रांडां!” कैय’र वा पीलू चुगण लागी। रीस में तंबोळ होयोड़ी।
पण उण री रीस कांई साच-माच री रीस ही? कांई साचांणी ई पीलू चुगण लागगी दाखूड़ी? हाथ तौ पीलू चुगै, आंख्यां नीची, पण हियौ तौ दौड़-दौड़ वठी रौ वठीनै जावै।
छेवट आंख्यां घणी जेझ लाज रै कोडीलै बंधणै बंध्योड़ी को रैय सकी नीं। फाटोड़ै ओढणै री माथावटी सावळ कर’र उण चोर निजर सूं मारग कांनी देख ई लियौ।
मारग कांनी देख्यौ तौ साम्हीं सोनियौ दीस्यौ, काळौकुट डील, गोडां सुधी रै अडीवठै ऊपर लीला रंग री बंडी पैर्योड़ी। माथै डोढेक हाथ रौ पीळौ अंगोछियौ लपेट्योड़ौ। जांणै भाखर रै गळै पसर्योड़ी बाळू माथै भुंई रींगणी री बेल। पूतळी रै उनमांन गढ्योड़ी धारदार, सध्योड़ी काठी। ऊंचौ कद। तीखी धजर नाक नीचै काळी रूंआळी अर माथै खीरा जिसी दप-दप दीपती आंख्यां। दाखूड़ी जाळ री डाळ रौ छीदरौ ओटौ लेय’र देखण लागी तौ देखती ई रैयगी—इसौ मोवणौ रूप। भगवांन तूठै जिणनैं इसौ वर मिळै। उण मन में विचार्यौ। उणरै रूं-रूं में जांणै साकर घुळगी होवै। “अै छोर्यां किसी गैली है। कोई हाकौ पाड़’र उणां नैं बोलावै क्यूं कोनी?” उण मनोमन विचार कर्यौ।
सोनियै रा जवांन पग तेजी सूं बैवै हा।
अै तौ अबार बिना देखियां ई सारै सूं निकळ जासी, ओ जांण’र दाखू रै हिवड़ै री धड़क बध रैयी ही—धक-धक-धक..! “लो, अै तौ सारै कर निकळग्या अर म्हैं सावळ देख ई को सकी नीं। इण नैं कैवै अभाग..!”
उण मनोमन विचार कर्यौ, “म्हैं ई कोई जुगत करूं? खैंखारौ करूं? सुण’र अठीनै देखैला तौ सरी।”
मगज में आ जुगत आवतां ई दाखू लाज सूं लाल पड़गी। हे राम! वै तौ कांई ठाह देखै कै नीं देखै, पण अै छोर्यां इण बात नैं आखा मुलक में चावी कर नांखैला। मावीतरां रै कांनां सुधी बात पूगैला। पछै तौ मर्यां ई सरैला। अै रांडां बात नैं घिस-घिस’र आखी ऊमर खिल्ली उडावैला, जिकौ सवाय में! मिनख बूढौ होवै, बात किसी बूढी होवै? साथण्यां रा तांना सुण-सुण म्हनैं तौ छेह देवणौ पड़ैला।
“हे भगवांन! तौ पछै कांई करूं?” दाखू मनोमन विचारै!
इतरा में तौ जाळ माथै सूं मेथकी हाकौ पाड़्यौ, “जीजा, ओ जीजा, राम-राम।”
सोनियौ ‘जीजा’ बोल सूं संकीजियौ, पण मन मांय जांणै मिसरी घुळी होवै। सासरा रै गांव री सीम, जकौ अेकर तौ इसी लाज आई कै उतावळा पग देय’र वठा सूं पड़ भाग होवण रौ तेवड़ियौ। पण, दौड़णौ किसौ सारै हौ? खाताई सूं बैवता पग ऊकळचूक मन रौ साथ कठा सूं देवता? थमग्या।
सोनियै संकोच सूं जाळ कांनी देख्यौ। मनोमन विचार्यौ कै कांई ठाह इण छोर्यां में दाखू ई होवै! जवांन उमर रै कारण अर खाताई सूं चालण रै कारण रगां रौ लोही तौ तेजी सूं बैवै ई हौ, दाखू रौ नाम मन में चीतवण रै कारण वळै उतावळौ बैवण लागौ। सांस भरीज-भरीज फुरआटै सूं लोहार री धमण ज्यूं बाजण लागौ- सूंऽ-सूंऽ। चाल थोड़ी धीमी करी। मुळक्यौ। बोल्यौ, “राम-राम, साळी।”
खुली मूंफाड़ सूं दांत चमकण लागा।
“यूं आघा सूं राम-राम क्यूं करौ, इण जाळ में किसी भूतणियां बसै है?” पाबूड़ी सोनियै नैं आपरै कांनी बोलावती थकी कैयौ, “अरै आवौ! दो मूठी पीलू तौ खावता जावौ।
दाखू तौ लाज सूं जांणै जमीं में बूरीजगी होवै।
यूं तौ उण रै मन में हरख को मावतौ हौ नीं, पण समाज में रैवां हां, जिकौ निरी ई बातां मन नैं मार’र ई करणी पड़ै! आंख्यां ई आंख्यां में पाबूड़ी नैं धमकावती धीमै-सी’क बोली, “छांनी बळ, रांड! निसरमी!”
पण धमकावतां धमकावतां पाछौ उण कांनी जोयौ, जद लाग्यौ, जांणै उण री आंख्यां मेथकी रौ औसांण जतावती होवै। आंख्यां मन रौ भेद उघाड़ौ कर देवै। दाखू रै आंख्यां री धमकी ई साव नरम पड़गी। इसी पुळ रौ सुख दूजौ ई होवै।
सोनियौ मुळकतौ थकौ उथळौ दियौ, “जाळां में तौ भूतणियां बसै ई है। इण में नवादू बात कांई?”
पछै हो-हो कर’र हंस्यौ, “भूतणियां लाग्यां केड़ै माथै चढ’र बोलै, जद ई खबर पड़ै कै भूतणी लागगी है, नींतर दीसण नैं तौ भूतणी ई थांरै जिसी रूपाळी’ज दीसती होवैला। नाजक अर नखराळी।”
पाबूड़ी रै तौ जांणै मूंढा में लाडू दीधौ। कांई जवाब देवै?
इसौ ओपतौ जवाब सुण’र दाखू रौ तौ रूं-रूं खिलग्यौ—भील रौ जायौ, पण बात बणावण में कितरौ चतर है। इसौ ओपतौ जवाब तौ भला-भला को दै सकै नीं, इतरी मीठी बोली!”
सोनियै नैं जाळकी कांनी आवतां देख’र सै छोर्यां जाळकी नीचै ऊतरी, घाघरा रा काछोटा खोल’र गाभा सावळ कर्या।
नीं तौ लूगड़ी रौ कोई मतळब हौ, नींज हांचळां रौ ई, छतां सै छोर्यां आपौ आपरी बिखर्योड़ी लूगड़ी नैं सावळ हांचळां माथै करी।
दाखू कांई करै? गजब रै गतागम में पजी। वा ई माथै पल्लौ नांख, अपूठी फिर, छोर्यां भेळी ऊभ जावै? यूं ऊभी रैवतां लाज सूं धरती में बूरीज को जावै नीं, वा? अर मिनख लांपौ लगावै जिकौ न्यारौ, चीथड़ा फाड़-फाड़ जीवणौ हरांम को कर देवै नीं? कांई करै दाखू? उण जाळ माथै रैय’र छिपण में ई भली बिचारी। यूं तौ उण जाळ में छिपण रौ घणौ ई जतन कर्यौ पण भलांई कितरी ई जाडी क्यूं नीं होवौ, बापड़ी जाळ री कांई बिसात, कै हेठै ऊभै मिनख री दीठ सूं डाळा माथै बैठी कोई काया छिप सकै! छतां दाखू छांनै-सी’क अेक डाळ लारै छिपण रौ भरम पाळ्यौ
बाकी सै छोर्यां जाळ हेठै बैठगी। सोनियौ ई जाळ हेठै आय बैठी। उण रै पगां हेठै किचरीज’र सूखा पता करड़-करड़ बाज्या। अचपळी सजना बोली, “जीजौ तौ घूघरा बजावतौ ई आवै है।”
“जीजौ तौ घणा ई घूघरा बजावै”, रोळ करती पाबूड़ी कैयौ, “पण घूघरां रै घमरोळ सूं रीझण वाळी तौ जीजा नैं दीसै कोनी। बापड़ौ अणहूंतौ तावड़ा में तड़फा तोड़ै।” यूं कैवतां लाज सूं गोटै होवती पाबूड़ी पल्लै रौ गोटौ मूंढा में घाल लियौ।
पण तौई खिलखिल किसी रुकै।
सजनां अर बाबूड़ी ई हंस-हंस’र लोटपोट होयगी।
मिसखरी में मोहीज्योड़ी छोर्यां आंख्यां री कोर सूं दाखू कांनी सांनियां करै। वै घड़ी-घड़ी उण डाळा कांनी देखै, जठीनै दाखू छिप्योड़ी ही।
छोर्यां नैं यूं ठिमरोळै चढियां देख दाखू रौ तौ लोही परौ बळियौ— रांडां, लाजबायरी। रांडां, यूं रोळा करीजै? इणां रै आंख्यां नचावण सूं धकला नैं ठाह कोनी पड़ै कांई, कै कोई न कोई अठीनै छिप्यौ बैठ्यौ है। अर, जो सांनी समझ, उण अठीनै देख लियौ तौ? अर देख’र बोलाय ली तौ? अै ई रांडां आखी दुनिया में ढोल बजावती फिरैला। नांव तौ डुबावैला ई अै म्हारौ, आखी ऊमर चिढावैला जिकौ सवाय में।
पसेवा सूं दाखू रा कपड़ा इसा भींज्या कै जांणै अबै निचोड़ौ कै अबै निचोड़ौ।
सजनां बोली, “जीजा, दाखू नैं अठी परी बुलावां, तौ कांई देवौ?”
दाखू लाज सूं लळाबोळ! मन में मीठास फूटौ, पण आंखोआंख में धमकावै, “दुर रांड! इण फीटी री बात तौ सुणी। जावण दौ इणां नैं। इण सजनकी रा तौ कांन मुरड़-मुरड़’र लोही नीं काढ दूं, जितरै होयौ ई कांई है!”
सोनिया रै मन में जांणै लाडू फूटा। अेकर तौ लाज उण री जबांन थाम ली, पण इतरी लाज राख्यां अै छोर्यां आपरै मन में कांई समझैला? उण विचार्यौ— जवाब तौ तुरकी-ब-तुरकी ई देवणौ चाईजै। हुळस अर कैयौ, “तीन लोक रौ राज देऊं, तौई थोड़ौ, मांग’र तौ देखौ!”
जवाब सुण’र दाखू रै रूं-रूं में इमरत छकग्यौ। कितरौ कोडीलौ है आं रौ मन। दाखू नैं लागौ, जांणै वा जाळ सूं छूट’र नीचै पड़ जावैला! जांणै उण रौ आपरी देही रै माथै कोई सारौ ई को रैयौ नीं! जांणै वा फूल रै उनमांन खिर’र सोनिया रै खोळा में पड़ जावैला!
छोर्यां कैयौ, “तौ पल दो पल आंख्यां मींच’र उण रौ नांव जपौ, देवी होवै ज्यूं परतख परगट होवैला।”
अणछक आणंद सूं सोनियै री रूंआळी रा कांटा ऊभा होयग्या। बोल्यौ, “लो साळी, थे कैवौ तो आंख्यां तौ अै मींची अर नांव रौ जप तौ मनोमन करण सूं जप रौ फळ बेसी होवै बतावै। म्हैं तौ ग्यांनी पंडतां सूं औ ई सुण्यौ है।” औ कैय’र उमाव सूं मुळकती आंख्यां मींचतां उण कैयौ, “पण जाप रौ फळ जरूर मिळणौ चाईजै। देख लीजौ साळी, कठैई थांरी वाचा निरफळ नीं परी जावै!”
छोर्यां तौ— देख दाखूड़ी, बापड़ौ जीजौ थारै सारू तपस्या करै। अबै सरमीज मती। नीचै बळ परी।” कैय’र ततैया मनवाती बोली, “अैड़ौ मौकौ तौ परण्यां पछै ई को मिळै नीं।”
लाजां मरती दाखू कांई करै? जाळ सूं हेठै उतर’र जाळ रै गोढ रै चिपगी। मन में विचार्यौ— रांडां किसी निसरमी है, म्हनैं अेकली नैं छोड’र न्हाटगी। गांव में बात फूटगी तौ कांई माजनौ रैवैला! मां-बाप कांई कैवैला? पण आंख्यां मन री बात मांनी कोनी। अेक अजब हठ सूं सोनिया कांनी देखती रैयी।
अेकर चौनिजर होयां तौ निजरां ई निजरां रै मारफत मन में जिकौ नेह रौ व्हाळौ बह्यौ, वठै नीं तौ सरीर री जरूरत ही, नी’ज भासा री। रस री जिसी झीणी बातां आंख्यां कर सकै, वा जुगत जबांन नैं नसीब कठै? पण आंख्यां थाक जावै जद? जद हाथ-पग आपरौ कांम करण लागै।
सोनियै बध’र दाखू रै चोटलै में बंधी लालर हाथ में लीनी, “रूप री इसी धणियांणी पैरै, लालां तौ तदीज फूठरी लागै।”
हेज में भर’र सोनियै लालर नैं आपरै गालां रै लगाय ली।
दाखू री पलकां झपकणौ भूलगी।
हिया में इमरत रौ झरणौ झरण ढूकौ।
बखत वठै ई थमग्यौ।
थोड़ी जेझ फेर वठै ऊभी रैयी तौ जांणै भुंई कंप हो जासी, इण भौ सूं सोनिया रै हाथां मांय सूं लालर छोडाय दाखू वठा सूं दौड़ी। होठां ई होठां भुणकारौ फूटौ, “आ कांई कालाई करौ? छोर् यां रांडां अठै कठैई छिपी होसी कौगत देखण नैं। थोड़ी लाज तौ राखौ।”
सोनियै रै कांनां में जांणै इमरत री झारी ढुळी होवै।
लालर छोडावती दाखू रै लारै दौड़, उण रौ पुणचौ पकड़, दो पुळ उण नैं रोड़, मन री बातां करण सारू सोनियै रौ मन तौ घणौ ई तड़फ्यौ, पण समाज री रीत, घर री कांण अर साईनां री कौगतां उण रा पग रोड़ दिया।
दड़बड़-दड़बड़ दौड़तां जाळकी री झुरट में अड़’र दाखूड़ी रै कुड़ती रौ अेक बटण टूटग्यौ। सोनियै उण टूटोड़ै बटण नैं झपट’र यूं उठायौ जांणै उण नैं कोई मोती लाधौ होवै। बटण नैं देख-देख निरी ई ताळ अणूंतौ ई राजी होवतौ रैयौ। छेवट उण नैं आपरी रूमाली रै अेक खूंणा में जतन सूं बांध लियौ।
उण दिन बैसाख रै भर बेपार री बळतरा में ई दाखू रै मन में नेह रौ जकौ रोप रुपियौ, वो दिन दूणौ, रात चौगणौ बधतौ-बधतौ बड़ जितरौ मोटौ होयग्यौ। इण सारू मां री बात दाखू सुण को सकै नीं। मां नैं लाण नैं बड़ बण्यै इण अदीठ बिरवा री ठाह कठै? उण रै भाव दाखू रै ऊमर री जोध-जवांन छोर्यां ज्यूं दाखू ई मोरियौ गवावती आपरै घरै पूगै, तौ उण री ई सांस में सांस आवै। ऐरू नैं कंडिया में घालियौ, कै मां-बाप नचीता!
मां रै तौ बस, अेक ई रट, “सगपण होयौ तौ कांई होयौ, उण नैं कांई ठाह कितरा बरस लागै छूटतां नैं? राज री जेळ होयी है, राज री। दो बरस ई छूटै अर चार बरसै ई छूटै। थूं उण री बाट कठा तक जोवैली, गैली!
“अर बाट जोवां ई क्यूं? आपां तौ न्यात-जात सै सूं बरी हां। सोनियौ नीं सही, रूपलौ सही। चोखौ छोरौ है। काल ई उण रौ बाप आय’र गयौ। थारै बाप री ई रूंण है। उण गोळ-मोळ हंकारौ पण भर ई दियौ है। बस, थारी जिद देख’र टाळमटोळ करै है।”
मां तौ न्यात-जात सूं बरी हो सकै, पण दाखू? वा बैसाख में जाळ हेठलै उण पुळ सूं किंयां बरी होवै?
लालर री इण लालां सूं किंयां बरी होवै, जिणां नैं आपरै गालां रै लगावतां सोनियौ अधगावळौ होयग्यौ हौ।
टूटोड़ै उण बटण सूं किंयां बरी होवै जिण सूं अजै लग इमरत रौ व्हाळौ बेवै है।
अर मां? मां नैं बापड़ी नैं ठाह ई कांई?
सोनियौ जेळ क्यूं गयौ, इण रहस नैं तौ बस दाखू ई जांणै।
पण वा आपरी मां नैं कांई कैवै?
खीजगी दाखू।
“थूं म्हनैं चार रोटी कोनी घाल सकै, मां! तौ म्हैं न्यारौ झूंपड़ौ बांध दूं। अठै ई मजूरी कर’र खावणौ है अर बठै ई मजूरी कर’र ई खावणौ है। अर इसी’ज नीं खटती होवूं थारै घर में, तौ टूंपौ देय’र मार परी।”
दुख में दाझगी मां! कांई सुण रैयी है वा दाखू रै मूंढा सूं।
आ वा ई दाखू है? पैला वा बोलती, जद फूल झड़ता हा।
कांई कैवै है दाखू। अै बोल बेटी रै मूंढा सूं फाबै? मां बगनी होवै ज्यूं उण रै साम्हीं देखै।
दाखू बगग-बगग रोवण लागै—मां! म्हारी मनगत समझै क्यूं कोनी।
मां रौ बैम खरौ होवै— जरूर किणी भूत-प्रेत री झपट में आयगी है छोरी।
सगळी लाय पाबूड़ी रै ई लगायोड़ी है। दो-तीन महीनां पैली सोनिया नैं मिली ही, कठैई मारग में। बातां ई बातां में बात चाली तौ कै दियौ, कै जीजा अैस कांनूड़ा माथै मुकलावौ तौ हौ जासी, पण वो सरपंचां रौ मोट्यार दाखू नैं देख’र खैंखारा घणा करै है। कठैई कीं ऊंच-नीच होयगी, तौ दाखू जीवती को रैवै नीं।
पाबूड़ी री बात सुण सोनिया रै तौ जांणै बीछू रा बीछू झूंबिया होवै।
घणी करी न थोड़ी। उणी’ज पल सरपंचां रै मोटियार रै लारै लागग्यौ—कै तौ वो नीं, कै म्हैं नीं। सरपंच रौ दीकरौ है, तौ कांई होयौ? उण री आ मजाल कै म्हारी बईर रै लूगड़ां में हाथ घालै।
दूजै दिन भात वेळां रा मौकौ हाथ आयौ। सरपंचां रै छोरा माथै डांगड़ी बाय दी। ओ तौ भगवांन भलौ, कै डांग चूक’र खब्बा रै ई लागी। नंई, तौ कपाळ रा फेंफाड़ा बिखर जावता।
आ खबर पण पाबूड़ी ई लायी ही।
अेक दिन आय’र कैयौ, “सोनिया नैं तौ जेळ होयगी।”
दाखू रै डील में जांणै अेकै सागै सौ-सौ बीछू झूंबिया होवै। काळजै लाय-लाय लागगी, “काळजीभी रांड! यूं कांई बोलै?”
“साची!”
“रामपीर री..!”
“सौगन...!”
“क्यूं?”
“सरपंचां रै छोरा रै डांगड़ी परी वाई। उण रौ खब्बौ भागग्यौ।”
“सरपंचां रै किसोड़ै छोरा रै? मोटोड़ा, मनोर रै?”
“हां, मनोर रै।”
सुण’र दाखू रौ काळजौ अेकर सी’क सीरौ होयग्यौ। जांणै जेठ में ठेट हिंवाळै
री हवा लागी होवै। पछै पूछ्यौ, “क्यूं? क्यूं वाई डांगड़ी?”
“थारै सारू।”
“म्हारै सारू?”
“हां, थारै सारू। मनोर थनैं देख’र घणा खैंखारा करतौ हौ! उण रै मन में पाप हौ, इण सारू।”
“नईं अै!”
“साची।”
दाखू थोड़ी जेझ तक छांनी रैयी, पछै पूछ्यौ, “इण बात री उणां नैं कियां
खबर पड़ी?”
“किणीं कैय दियौ होसी।”
“थैं कैयौ हौ?”
पाबूड़ी चुप रैयी। अेक पल सारू गतागम में पजगी— बात कैवै कै नीं कैवै।
दाखू री आंख्यां में सवाल ऊफणतौ हौ। जवाब जांण्यां सिवाय उण नैं जक को ही नीं।
पाबूड़ी कैयौ, “म्हनैं उण पूछियौ हौ। म्हैं ही जिसी बात बताय दी।”
“पछै?”
“पछै जीजै औ ई पूछ्यौ कै थारी बैन रौ कांई मन है? म्हैं कैयौ बैन तौ मन री मन में बळै, पण करै कांई? हां, कीं ऊंच-नीच होयगी, तौ जीवती को रैवै नीं।”
“पछै?”
“पछै कांई? दूजै दिन तौ मझ बेपार रा मनोर रै तांण’र इसी डांगड़ी वाई कै वा तौ खांधै रै लागी, थोड़ी-सी’क चूकगी, जकौ खांधौ ई भागौ, माथा रै लागती तौ फेंफाड़ा बिखर जावता।
पाबूड़ी अेक पल थमीं। पछै कैयौ, “डांग मार्यां कैड़ै जीजौ म्हारै कनैं आयौ हौ, कैयौ— म्हनैं तौ जेळ होवैला ई, पण जेळ तौ म्हैं उण रै खातर ई जावूं हूं।”
“म्हनैं सै खबर है।” म्हैं कैयौ।
“थनैं तौ खबर है, पण उण नैं ई खबर है कांई?” जीजै निस्कारौ नांख्यौ। उण रौ गळौ गळगळौ होयग्यौ हौ।
दाखू री आंख्यां ई भरीजगी। पूछ्यौ, “पछै?”
दाखू नैं हीमत बंधावती पाबूड़ी कैयौ, “जीजा जिसै मोटै मन रौ मिनख को
मिळ सकै नीं। थारै सारू कांई कैयौ, खबर है?”
“कांई कैयौ?”
“कैयौ, जेळ में तौ म्हैं जावूं हूं। थारी बैन नैं किसी जेळ है? जेळ सूं छूटूं, जितरै रैवै, तौ उण री मरजी अर दूजी ठौड़ जावै, तौ उण री मरजी। वा दुखी नीं होवै। म्हारै कांनी सूं सै छूट है।”
दाखू री आंख्यां सूं आंसूं बरसण लागा— झर-झर... झरर-झरर..! मनोमन कैयौ, “म्हनैं ई उण रै साथै जेळ होय जावती, तौ कितरौ सखरौ होवतौ।”
मां कितरी ई जिद क्यूं को करौ नीं, इसा मनमेळू मरद नैं छोड’र दाखू गैली है कांई, जिकौ दूजौ घर करै! हीरौ छोड’र भाटा सूं आफळै है कोई?
पण मन री इण रळियामणी बातां नैं मां कांई समझै!
नीं समझै तौ मत समझौ नीं, म्हारा मांटी तौ वै ई है। लालर री लालां नचावती दाखू इसी मुळकै, जांणै उण नैं मोती लाधौ होवै।
ना समझ मां रांमापीर रै हाथ जोड़’र चढावौ बोलै, “हे बाबा रामापीर, छोरी झपट में आयगी है। थूं लाज राखजै।”
हां, झपट में ई तौ!