हवेली रै परकोटै मांय अणजांण मिनख नैं वड़तां देख’र टैमी भूसण लागी। टैमी म्हारी पाळतू विलायती कुत्ती। वा अस्टपौर इण परकोटै में रैवै अर पक्की हाजरी बजावै। वीं रै होवतां थकां किण री मां सोजतियौ अजमौ खायौ, सो परकोटै में पग धर सकै।

टैमी नैं भुसती सुण’र परकोटै में रैवणिया टींगर-टांगर बारै आय जावै। आज सागै इज हुई। टैमी नैं भुसती सुण’र सगळा घरां सूं टाबरिया बारै आयग्या। वै फाटक खोलतै डोकरै नैं अेकण साथै पूछण लाग्या, “किण सूं मिळणौ है थांनैं? कठै सूं आया हौ?”

डोकरौ अेक सवाल रौ पडूत्तर देवै जितरै बांदर फौज दस सवाल पूछलै। इतरै में टैक्सी सूं उतर नै म्हैं घरां पूगग्यौ। टैमी अजै तांई बराबर भुसती थकी लव तोड़ै ही। फाटक खोल’र परकोटै में वळतां भुसणौ बंद करनै वा म्हारै पगां में लुटण लागगी, पण थोड़ी’क ताळ होयां पाछी भुसण लागगी। वीं री आंख्यां कदैई म्हारै कांनी तौ कदैई परकोटै रै मांयली कांनी ऊभै अधखड़ कांनी पासा पलटै ही।

म्हारै ‘टैमी’ कैवतां वा चुप रैयगी। म्हैं वीं अधखड़ मिनख सूं बंतळ करण लाग्यौ। म्हारा सवाल सागण वै इज हा, जिका टाबरां रा हा। फरक फगत इतरौ इज हौ कै म्हैं वीं सागै नेठाव सूं बंतळ करै हौ। म्हारै सवालां रा पडूत्तर दियां पछै वीं म्हनैं पूछ्यौ, “अठै जमना नरस रैवै कांई?”

“हां, अठै रैवै।” म्हैं कैयौ।

“किण ठौड़ रैवै? म्हारौ मतळब किसै मकांन में रैवै सा?” वीं पूछ्यौ।

म्हैं आंगळी सूं इसारौ करतां बतायौ, “इणी’ज परकोटै रै छेलै खूंणै।” कैवतौ थकौ म्हैं वीं नैं जमना रै बारणै तांई लेयग्यौ। म्हैं वीं नैं कीं कैवण वाळौ हौ कै वीं नैं जोर सूं धांसी चालबा लागी। वीं री छाती में दम नीं मावै हौ अर सांस रैय-रैय नै फूंकणी री दांई चालै ही। टैमी पूंछ ऊंची करनै वीं नैं सूंघवा लागगी ही।

थोड़ी’क ताळ में वीं रौ दम बैठौ! वो कदैई साम्हीं बंद बारणै कांनी देखै हौ, तौ कदैई म्हारै मूंढै कांनी। म्हैं आडै रौ कूंटौ जोर सूं खड़खड़ायौ। पण आडौ खोलण नै कोई नीं आयौ, तौ म्हैं वीं सूं फेरूं बंतळ करण लागग्यौ, “थे जमना रै कांई लागौ?”

“वा म्हारी लुगाई है।” वो ठीमर सुर में बोल्यौ हौ। म्हनैं खुद रै कांनां माथै भरोसौ नीं होयौ। म्हैं वहम मेटण वास्तै फेरूं पूछ्यौ, “जमना थांरै?”

“म्हैं कैयौ नीं सा, वा म्हारी घरवाळी है। म्हैं वीं रौ घरधणी हूं।”

म्हारै दिमाग नैं झटकौ-सो लाग्यौ... जमना तौ मोट्यार। जोध-जवांन फूटरी-फरी छोरी।... अर पचास-साठ रै अेड़ै-गेड़ै बूढौ टरड़ बैमार आदमी। म्हैं कीं जेज विचारां में पजग्यौ।... पण होसी बाबा! दुनियां में नीं-नीं जिकी बातां बणै।... म्हैं पाछौ कूंटौ खड़खड़ावण लाग्यौ। पण मांयनै सूं खुड़कौ नीं सुणीज्यौ, तौ वीं नैं कैयौ, “स्यात जमना सफाखांनै गई होसी अर मांयनै वीं री वडी बैन अर मां सूती होसी। मांयनै सूं रेडियै री आवाज सुणीजै है। इण कारण बारली आवाज सुणीजती नीं होसी।”

“तौ आप थोड़ौ आडौ भचीड़ौ नीं, स्यात सुण लेसी।” वो कायौ होयोड़ौ अरदास करतौ-सो बोल्यौ।

म्हैं अेकर फेरूं कूंटौ खड़खड़ायनै दरवाजै रै धक्कौ दियौ कै दरवाजौ खुलग्यौ। साम्हीं पंखौ चालै हौ, रेडियौ बाजै हौ अर मां-बेटियां बैठी-बैठी गेहूं रळकावै ही। दरवाजै माथै म्हनैं अर म्हारै साथै आपरा जमांई नैं ऊभौ देख’र जमना री मां अेकर तौ थोड़ी हळफळी, पण पछै संभळगी।

म्हैं दिनूगै सूं भूखौ हौ अर दिन मथारै आयग्यौ हौ, सो पेट में कूकरिया बोलै हा। सासू-जमांई नैं भेळा करनै म्हैं तौ म्हारौ मारग पकड़्यौ अर घरां जाय नै रोटी जीमण नै बैठग्यौ। जीम-चूंठ’र आडौ होयौ तौ आदत माफक थोड़ी झपकी आयगी।

पण थोड़ीक ताळ में पाड़ोस में हाका-हूबौ सुण’र म्हारी नींद उडगी। जमना री मां री आवाज साफ सुणीजै ही। वा आपरै जमांई नैं मूंढै आई गाळियां काढ’र आपरौ आफरौ झाड़ै ही।

“अबै इण घर सूं थारौ कांई रिस्तौ रैयग्यौ। अबै अठै थूं कांई लेवण नै आयौ?... थनैं अठीनै मूंढौ करतां सरम नीं आई?... अेक नैं तौ मार नांखी, अबै दूजोड़ी नैं मारण वास्तै बावड़्यौ है।... बारै जावै कै धक्कौ-धूंबौ देयनै बारै कढाबूं?... इसै नाजोगै मिनख नैं फेर इण घर में ठौड़, हित्यारौ कठै रौ ई? हरांमी मर्‌यौ कोयनी, हाल जीवै है? खावण-कमावण री पौंच नीं जद अठीनै आयग्यौ।”

वो कैवै हौ, “मांजी; म्हैं थांरौ जमांई हूं। इंयां-किंयां बोलौ हौ थे? थोड़ौ-घणौ ‘तौ विचार करणौ चाईजै थांनैं।”

“किण रौ जमांई अर किण रौ फमांई? जमांई अर जमड़ा किण रा सगा? जद सूं म्हारी बेटी नैं छोड’र भांणकी नैं लेग्यौ अर वीं रै रांमसरण होवण रा समाचार आया, तद सूं म्हारै भाव तौ थूं मरग्यौ।” अर पछै डोळा काढ’र फेरूं कैवण लागी ही, “निकळै है सबूरी सूं घर बारै कै धक्का देय नै कढावूं।”

डोकरड़ी रा बोल सुण’र म्हारै मन में झाळ-सी उठी, पण अचंभा री बात कै वीं रौ जमांई अल्ला री गाय बण कांन ढेर्‌यां ऊभौ कड़वा बोल सुणै हौ। म्हनैं इण आदमी माथै रीस रै सागै दया पण आई। गांव री गाळ तौ गिंवार नैं अबखी लागै, पण वो जांणै हौ कै बोरड़ी रै बाथ भरियां तौ कांटा इज चुभसी। वो हाथ जोड़तौ निबळाई सूं कैवण लाग्यौ, “थे म्हारी बात तौ सुणौ। खुद री औलाद कोई नै खारी लागी है कदैई? वा तौ म्हारै जीवण रौ आधार ही। म्हैं इतरा दिन वीं रै भरोसै इज जीवै हौ। पण मरणा-जीवणा तौ कोई रै हाथ री बात कोनी।” अर वीं री आंख्यां जळजळी होयगी।

आपरै बेनोई सागै होवतै इसै नपावट वैवार नैं देख’र जमना री मोटी बैन रै मन में धपळका-सा उठै हा। वा सगळौ रासौ देख सुण’र काठी भरीजगी ही। पण वा बापड़ी बाल विधवा होयोड़ी आं रै आसरै दिन तोड़ै ही। इण वास्तै बीच में बोलण री कीं हिम्मत नीं करी। छतापण जद डोकरी कांनी सूं अति होवती लखाई तौ वा रैय नीं सकी। वा बोली, “मां, अै किसा है तौ इण घर रा जमांई। आं री इण भांत दुरगत करणी चोखी बात कोनी। घरां आयौ अर मां-जायौ बरोबर गिणीजै अर इणां तौ इण घर तोरण बांदियौ है। भांणकी रै रांमसरण होवण री बात करां तौ मरणा-जीवणा हरि रै हाथ है। तौ सै कुदरत री माया है। अबै थूं नेहचौ धार। पाड़ोसी सुणसी तौ कांई कैसी?”

इतरौ सुणतां पांण जांणै लाय में पूळौ पड़्यौ। डोकरड़ी ताचक’र आपरी बेटी कांनी गई अर थूक उछाळती जोर-जोर सूं कैवण लागी, “कांई कैसी पाड़ोसी? इण नैं टुकड़ा पाड़ोसी घालसी? होवै हिम्मत तौ घालै अर ले जावै आपरै घरां।”

म्हैं वठै ऊभौ-ऊभौ सुणै हौ।... वा आगै कैवण लागी, “थां रांडां रै कांई लागै? रांड-भांड ऊखरड़ै मसांण। खुद तौ टुकड़ा इण घर माथै बैठी तोड़ै अर ऊपर सूं फेर पंचायती न्यारी करै बापड़ी। इण घर में रैवणौ है तौ चुपचाप बैठी रै। लपर-चपर री जरूत नीं। अर जे जबांन नीं झिलै तौ थूं इण रंडवै रै लारै। रांड करगसा कठै री! म्हनैं समझावण नैं आई है, म्हारी वडेरी बणनै।”

आपरी मां रै इण बोलां माथै वा फीटी पड़नै रोवती थकी घर में वड़गी। पण बखड़ी में झिल्यौ वीं रौ बैनोई वीं री मां रै मूंढै आया बोलां सूं बाथैड़ौ करतौ उठै ऊभौ रैयौ। म्हनैं यूं लाग्यौ, जांणै वो जीवतौ मरग्यौ। पण वीं चीकणै घड़ै माथै कठैई छांट नीं लागै ही। इसी नेढाई अर निसरमाई तौ जिंदगांणी में पैलड़ी वार देखी। हार खाय नै म्हैं पाछौ घर में आयग्यौ।

म्हारै आयां पछै हाका-हूबौ जोर सूं होवण लाग्यौ, तौ अड़ोस-पड़ोस सूं लुगायां-टाबर मोकळा भेळा होयग्या। घणा मिनख भेळा होवण सूं इतरौ फरक जरूर पड़्यौ कै गाळी-गुफ्तौ बंद होयग्यौ।

वो पाछौ जोर-जोर सूं खांसण लाग्यौ। थोड़ी’क ताळ में धांसी सूं अळूझ’र वो नीचौ बैठग्यौ। इसौ लखावै हौ जांणै वीं रै आंख्यां आडी अंधारी आयगी है। वीं रै इसारै सूं अेक टाबर लोटौ भरनै ल्यायौ अर वीं रै हाथ में झिलाय दियौ। वीं रै लोटा नैं होठां रै अड़ायां पैली’ज वीं री सासू चील री दांई झपटी अर हाथ सूं लोटौ खोस लियौ। टाबर नैं कांन पकड़’र घर सूं बारै काढ दियौ।

डोकरड़ी रीस में उफणै ही, पण वो नेहचै सूं भेळी होयोड़ी लुगायां नैं कैवै हौ, “म्हैं आं रौ जमांई हूं—सूरजमल। दस बरसां पैली आं आपरी बेटी म्हनैं लाडां-कोडां परणाई। इण सूं पैली म्हैं परणीज्योड़ौ हौ, पण घरवाळी चालती री। अै खुद म्हारै घणा लारै पड़ग्या अर म्हारै रिस्तैदारां सूं घणौ कैवायौ तद म्हैं सोच’र हुंकारौ भर्यौ कै चालौ ब्याव कर लेस्यूं तौ लारला दिन आरांम सूं कट जासी। पण धवळां में धूड़ पड़णी लिख्योड़ी ही, सो पड़ रैयी है। म्हैं आं नैं पैली घणा समझाया कै आंरी बेटी अर म्हारी औस्था में मोकळौ फरक है, सो इण बात माथै विचार करलै। पण वीं वगत दायजौ देवण री अबखाई ही अर आंनैं दूजौ कोई घर नीं मिळ्यौ, सो आपरी पीक सूं म्हारी गरज करनै आं आपरी बेटी रौ ब्याव म्हारै साथै कर दियौ। अर आज अै म्हनैं मूंढै आई गालियां बकै। पण कैवै नीं सा, कै गरज मिटी अर गूजरी नटी। वा इज सागण म्हारै सागै होय री है। अबै थे बतावौ कै इण बुढापै में लुगाई सिवा म्हारौ दूजौ कुण होवै? म्हैं इण अबखी वेळा में इज जांण’र अठै आयौ, पण मांजी तौ आवतां तोफांन खड़ौ कर दियौ।” कैवतां-कैवतां वीं री आंख्यां जळजळी होयगी ही। म्हैं आभै कांनी देख्यौ तौ बादळी छांटां-छिड़कौ करण लागी ही। लाग्यौ जांणै इण दुखियारा आदमी री दुरदसा देखनै आभौ आंसूड़ा टळकावै हौ।

थोड़ी’क ताळ में बादळी ऊपर सूं सिरकगी अर वो फेरूं लुगायां नैं कैवण लाग्यौ, “अबै थे बतावौ, म्हैं कांई भूंडौ कांम कियौ?”

“भूंडौ कांम कुण करै है सा! कदै-कदाच उतावळ में भूल होय जावै।” अेक जणी बोली।

वो बोल्यौ, “हां सा, इण वास्तै इज तौ जीवण में पछतावौ करणौ पड़ै। भगवांन करै म्हारै जिसी दुरगत कोई री नीं होवै। इसौ विखौ कोई वैरी-दुसमण में नीं पड़ै।”... इतरौ कैवतां-कैवतां वीं री धांसी ऊपड़ी तौ वा ऊपड़ी कै मूंढै रा बोल मूंढै में इज रैयग्या। छाती में सांस मावै नीं अर टसका करतां खैंखारौ थूकण री कोसिस करी तौ उठण री सिरधा नीं।

म्हैं वीं रै बाहूड़ै हाथ राख्यौ अर सहारौ देय’र बारै लेय आयौ। वीं ढोळै पड़्योड़ै ध्राव री गळाई दयामणी निजर सूं म्हारै कांनी देख्यौ। वीं री निजर में निबळाई, अेहसांणमंदी अर मजबूरी रा केई-केई भाव अेकण साथै तिरता लखावै हा। म्हनैं आयौ देख उठै ऊभी सगळी लुगायां घूंघटा काढ’र उठै सूं सिरकी।

म्हैं वीं नैं बारै लायनै बिठायौ। दूबळौ-पतळौ डील, आंख्यां ऊंडी गयोड़ी, धोळौ धोती-कुरतौ, खंवै अंगोछौ, कुरतै सूं पांसळियां साफ निजर आवै। धांसी चालण लागै तौ जांणै धमण सरू होई। म्हैं लोटौ भर नै पांणी लायौ। घूंटियौ लेवतां वीं रै दम रौ ऊपाड़ कीं धीमौ पड़तौ लखायौ।

जमना री मां म्हां लोगां रै देखतां-देखतां बारणै रा किंवाड़ जड़गी ही। वीं रै दरवाजै आगै सूं सगळौ मेळौ बिखरग्यौ हौ। सूरजमल रै कीं दम बैठौ तौ म्हैं वीं नैं सहारौ देय नै ऊभौ कियौ। वो म्हारै कांनी देख’र बोल्यौ, “थांरौ अेहसांण कद उतरसी।”

“अेहसांण किण बात रौ? मिनख इज तौ मिनख रै कांम आवै।” म्हैं कैयौ, “चालौ म्हारै घरां अर जद तांई जमना नीं आय जावै आरांम करौ।”

“नीं सा! अबै म्हैं अठै तौ अेक छिण नीं ठेर सकूं। इण जीवणै सूं तौ मरणौ भलौ। धुरकारियां पछै तौ कुत्तौ वीं ठौड़ ऊभौ नीं रैवै। म्हैं तौ मिनख हूं। दुखड़ा जितरा लिख्या है, वै तौ भोगणा पड़सी। वेमाता रा लेख झूठा किंयां पड़ सकै? भगवांन माथै भरोसौ है, चूंच दी वो चुग्गौ देसी। इण उपरांत कठैई सांस निकळ जासी तौ माटी में माटी मत्तैई मिळ जासी। इण हालत में अबै जीवणौ कित्तौक है? छेहलौ वगत जांण’र अठै आयौ हौ। किंयां होवौ, वा म्हारी परणैतर है। वीं रै हाथां में खोळियौ छूट जावतौ तौ मूवौ मुकोतर जावतौ... पण दोस वीं रौ कोनी, दोस म्हारौ खुद रौ है सा!... पांच बरसां पैली म्हैं वीं रै चरित्र माथै हकनाक लांछण लगायौ अर छोरी नैं लेयनै वुऔ गयौ। जोग री बात कै वा छोरी मरगी अर म्हारी हालत थे देखौ हौ।... फगत वहम-वहम में म्हैं म्हारी सुखी गिरस्थी में सागण हाथां लांपौ दै दियौ, नीं तौ आज अै दिन क्यूं देखणा पड़ता? पण दिन-दसा निबळी आवै जद किसी कैयनै आवै?” बोलतां-बोलतां वीं री आंख्यां जळजळी होयगी ही अर म्हैं वीं री बातां में डूब्योड़ौ बैठौ हौ।

घर सूं दो कोप चाय बण’र आयगी। म्हैं चौक में मांचौ ढाळ’र अेक कोप वीं नैं पकड़ाय दियौ। गरमागरम चाय हाथ में आवतां वीं री आंख्यां में खुसी छायगी। रातीचुट्ट होयोड़ी आंख्यां नैं वो पूंछतौ बोल्यौ, “म्हारौ सगळौ नसौ उतार दियौ अै मांजी!”

“थे नसौ-पत्तौ करौ हौ कांई?” म्हैं पूछ्यौ।

“हां सा, सौबत रौ फळ है बापजी, अमल उग्यां बिना नाड़का तूटण लागै, दिन में दो मावा करणा पड़ै।”

“अेक मावै में कित्तौक लेवौ।”

“चणै रै दांणै जितरौ अर वो मनवार करनै नीं लिरीजै जितरै बैरी उगै नीं!”

“चाय ठंडी होय री है।” कैवतां वीं चाय रौ अेक घूंटियौ लियौ अर हंडियै में सूं अमल रा विया हथाळी में लेय’र म्हनैं मनवार करी। म्हैं हाथ जोड़ दिया अर वीं रै हाथ सूं अमल आपरी हथाळी में लेयनै वीं नैं मनवार करी।

वो “वा...सा! वा....सा! घणौ होय जासी बापजी... घणौ होय जासी!” कैवतौ-कैवतौ डोढैक चिणै जितरौ अरोगग्यौ। ऊपर सूं चाय पी नै खेंखारौ कियौ तौ वीं रौ मूंढौ चिळकण लाग्यौ।

घणी ताळ बंतळ चालती रैयी। सिंझ्या होयगी। घर में सूं टाबर दो थाळियां में खांणौ परूस नै लियायौ अर म्हे दोन्यूं जणां उठै बैठ नै इज जीम लिया। खुराक री बात चाली तौ वो बोल्यौ, “नसैबाज अर बंधांणी आदमी हूं बापजी, म्हारी तौ इतरी’ज खुराक है। भांणै बैठ नै कोई भूखौ नीं उठै। फेर नूंवी बाजरी रा सोगरा अर गवारफळी रौ साग मिळ्यौ तौ जांणै पांच पकवांन मिळ्या।”

वो मूंढै रै हाथ फेरतौ बोल्यौ, “जमना हाल आई कोनी।”

“आती होसी। इज वीं रै आवण री वेळा है। कदै-कदास सफाखांनै में कांम होय जावै जद थोड़ौ मोड़ौ होय जावै।”

“हां सा, नौकरी है, पराधीन तौ हुकम री गुलांम!” वो निसांसा न्हाखतौ बोल्यौ हौ।

इतराक में फाटक खुलण रै समचै टैमी रै भुसण री आवाज आई ही। म्हारी निजर फाटक माथै पड़ी। जमना फाटक बंद करनै धीमै पांवंडां आवै ही। इसौ लखावै हौ जांणै वा दिनभर कांम करनै थाकगी ही। सूरजमल वीं नैं घणा दिनां पछै देखी ही, छतापण वीं रै रूप-रंग में कोई फरक नीं लखायौ। डीगी, गोरी, पतळी, कंचन वरणौ रंग, ओपतौ उणियारौ अर गुलाबी साड़ी में वा परी होवै जिसी लखावै ही। वा वीं नैं पैली करतां वत्ती रूपाळी लागी।

जमना म्हारै मांचै कनै आय पूगी। वीं अेकर आपरै घर रै बंद दरवाजै कांनी देख्यौ अर पछै निजर म्हारै कांनी फेरी! वीं म्हनैं पूछ्यौ, “आप कद पधार्‌या?” वीं रौ इसारौ आपरै घरधणी कांनी हौ।

“तीन-च्यार बज्यां रै लगैटगै।” म्हैं कैयौ हौ।

“अर जद सूं अठै बैठा है?”

“हां।” म्हैं कैयौ हौ।

“अर मां कठै गई?”

“अठै इज होसी। आं रै आयां पैली तौ घर में इज ही।”

वा गंभीर होयगी। वीं नैं बात बिगड़ण रौ अणभव होयग्यौ। वै दोन्यूं म्हारै निजरां साम्हीं’ज ऊभा-ऊभा बातां करण लाग्या। वां रै हरख उमाव रौ कोई पार नीं हौ। घणा बरसां पछै बिछड़्या प्रांणी मिळ्या हा। म्हैं घर कांनी वुऔ अर थोड़ी ताळ बंतळ करनै जमना घर कांनी गई परी ही।

म्हैं पांणी रौ लोटी भरवा परींडै कांनी गयौ, तौ पाड़ोस रौ गणमणाट कांनां में पड़्यौ। कारण कै आडी फगत अेक भींत ही। जमना रौ तीखौ सुर साफ सुणीजै हौ, “म्हारौ घरधणी किसौ है, थांनैं अबै वीं री पंचायती नीं। थे घर-घरांणौ देख’र म्हनैं वां रै पल्लै बांधी तौ अबै रगड़ौ किण बात रौ? मीठौ खावै वीं नैं खारौ खावणौ पड़ै। अबै तौ म्हारै जीवण रा अै आधार रैसी। भलां भूंडा है कै भला है, पण म्हारै वास्तै तौ सै कीं है। थांनैं इण बाबत कीं सोचणौ हौ, तौ म्हारा हाथ पीळा करायां पैली सोचणौ हौ। अबै तौ बिंधग्या सो मोती अर बंध्या जठै छूटणा। थांनैं उल्टौ आंरौ अेहसांण मांनणौ चाईजै। थे म्हारी सगाई सारू बीसूं ठौड़ फिर्या, पण आपणी माली हालत कमजोर होवण सूं दायजै री मांग रै कारण बातड़ी कठै बैठी कोनी। जद आंनैं गरजां करनै माडांणी हूंकारौ भरायौ। इणां आयनै तोरण वांदियौ अर थे म्हनैं आंनैं सूंप दी। बेटी अर बळद देवै जठै जावै। म्हैं कोई अेतराज नीं कियौ। आपरी किस्मत समझ’र बात नै अंगेजली अर परिस्थिति सूं समझौतौ कर लियौ, तौ अबै किण बात रौ रोळौ-रबदौ? आंनैं कोई गळतफहमी हुई अर अबै दिमाग सूं निकळगी। मियां-बीबी रा नेन्हा-मोटा मनमुटाव तौ चालता इज रैवै। आं रै होवतां आज म्हैं सूरमी हूं। कुण माई रौ लाल म्हारै कांनी आंख उठाय नै देख सकै? आं रै लारै इज तौ आज म्हैं न्यात-जात, कुटुंब-कडूंबै अर भाई-गिनायतां सूं बंध्योड़ी हूं। नीं तौ सही मारग चालतां थकां बापड़ी सुगणी री कांई हालत हुई, थां सूं कांई छांनौ है। इणी’ज भांत म्हारा दिन काटणा दोरा होय जावता। कोई आंख्यां फाड़-फाड़’र जोवतौ, तौ कोई नीयत बिगाड़तौ अर कोई आंगळी आगी कर-कर नै म्हारौ जीवणौ हरांम कर न्हांखतौ। ऊपर सूं फेर खरी-खोटी सुणावतौ, सो वत्ताई में। थे आंनैं अठै साथै नीं राखणी चावौ, तौ म्हैं अठै अेक छिण नीं ठेरणी चावूं। मूळी पानां सूं फूटरी लागै। पांच बरस अै अळगा रैया तौ सही रस्तै चालतां म्हनैं कांई-कांई देखणौ पड़्यौ वो म्हारौ जीव जांणै। म्हैं तौ आं रै साथै बंधण में बंध्योड़ी हूं, सो बंधण तौ मरियां इज तूटसी।” अर वा गळगळै कंठ अर जळजळी आंख्यां घर बारै आयगी।

आभै में बादळिया गाजै हा अर बीजळी पळाका मारै ही। म्हैं देख्यौ कै धणी-लुगाई दोन्यूं जणा म्हारै बारणै ऊभा म्हां सूं विदा मांगै हा। इसी मेह अंधारी रात में जावतां म्हैं वांनैं बरज्या, पण वै रुक्या कोयनी। मगसै अंधारै, म्हैं देख्यौ कै वै अेक दूजै रौ हाथ काठौ पकड़्यां फाटक बारै निकळ्या अर देखतां-देखतां निजरां सूं अदीठ होयग्या।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : मीठेस निरमोही ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै