जद-जद ई सावण री रुत आवै, बादळा रिमझिम-रिमझिम बरसै है, तद सगळा पिराणियां रो हिवड़ो उमंगतो मोरिया ज्यूं नाच उठै है। पण म्हारा भायला री लुगाई श्रीमती मूमल रो हिवड़ो जाणै क्यूं अमूझणी खावे है? इण बात रो राज उण रो धणी श्री मेघसिंह ईज जाणै सा। मेघजी नैं म्हूं बाळपणा सूं ओळखूं हूं। गांव में बाळपणा सूं सागै-सागै खेल्या-कूद्या हां। गांव री प्राथमिक पोसाळ में सागै पढ़िया हां अर कई दफा सागै लड़िया भी हा। तलाव में तिरतां टैम म्हूं आगै निकळ जांवतो तो व्हो पाछै सूं म्हारी टांगड़ी खांच’र लड़ लेवंतो हो कै उणसूं म्हूं आगै क्यूं निकळ गयो? पण कुल मिलाय’र म्हांकी मित्रता पक्की ईज रेंवती ही। हाल ई उणसूं मित्रता पक्की ईज है। अठै शहर मांय म्हूं टेलिफोन मेहकमा में काम करूं हूं। मेघसिंह मोटर पार्ट्स री अच्छी-खासी दुकान चलावै है। म्हारी तरियां ई व्हो ई परणेतो है। उणरी लुगाई श्रीमती मूमल सूं म्हारी औळखाण गांव सूं ईज है।
गांव में खेती-बाड़ी है, पण सावळ करबा व्हाळो कोई नीं है। इण वास्तै पांती साटै देय दिया करै है। मेघजी ईज बतांवतो हो कै पैली उणरी लुगाई सब संभाळ लिया करती ही, पण अेक हादसा रै पछै व्ही सूं सब छूट गिया। बरसात में खेत-बाड़ी री बगत म्हा बैमार रैवण लागगी, उणनै पागलपण रा दौरा पड़नै लागग्या। व्है ईं बरखा री रूत मांय ईज? इणरो कारण हो, उणनै इण रुत मांय आपरा अेका अेक लाडला बेटा री ओळूं सतावण लागती। आ तळाव कानी खेत जावती तद बठै ईज खास कर’र दोरो पड़तो। अेक बुजर्ग बतायो कै थबौळा लेंवतै तळाव नै देख’र इणरो जीव दोरो होय जाया करै है, इण वास्तै इण रुत मांय इणनै अठा सूं चार-छह महीना बठै ईज शहर मांय आप कनै राख्या करो। म्हैं सलाह मान’र अठै म्हारै कनै हर साल शहर मांय लेय आया करूं हूं। अठै इणनै आसीगे तो नीं है, पण तबियत बीजी ठीक रैया करै है।
मेघजी आगै बतायो, अठै अड़ोस-पड़ोस री लुगायां सूं जीव बिलम जावै है, म्हनै ई टैम माथै रोटी-बटका रो आराम है। म्हैं उणसूं हादसा रो कारण जाणणो चायो तद व्हो बतायो कै चारेक साल पैलां सावण री रुत मांय जद बिरखा रिमझिम-रिमझिम बरस रैयी ही, म्हांकै लाडलो बेटो आपरा भायलां रै सागै रमतो-रमतो तळाब कानी निकळग्यो हो। उण दिन दीतवार हो अर म्हूं शनिवार री सिंझ्या नै गांव आयग्यो हो। आपां रै अठै सूं गांव आंतरै कोनी, कोई आध घंटे रो गेलो है। हर आधा घंटा मांय जीपां किराया माथै दौड़नी सरू ईज हुई ही। तळाव रै तीर कनै म्हांकै मक्की रा खेत मांय निंदाण करै हो। घर रो कामकाज निपटाय’र घर व्हाळी ई हाथ बंटावण सारू आयगी ही। म्हूं कलेवो करणै लागो हो अर लुगाई खेत में निंदाण करवा लागी। इत्ता मांय तळाब में तैरतोड़ा टाबर कूकावण लाग्या—‘बचावो-बचावो’ उणां री आवाज सुणतां इज म्हूं तळाब कांनी दौड़ियो। म्हारै पाछै-पछै अड़ै-जड़ै खेतां रा ई कीं ई लोग दौड़िया। म्हूं तळाब मांय कूद’र डूबतोड़ा टाबर नै बावटियो पकड़’र तीर पे आयो अर हाथ मांय उठायो तो बो म्हारो इज छोरो मंगळू निकळयो। बो बेहोस हो, अेक दोय जणां री मदद सूं पेट रो पाणी काढ़वा ढूका। इत्ता में दूजी लुगायां सामै मूमल ई आय पूगी। मंगळू नै इण हाल मांय देख’र व्हा तो धाड़ मार’र रोवण ढूकगी। कोई सफाखाने ले जाणै री सलाह दीवी। संजोग सूं आगला गांव सूं शहर जावण तांई अेक जीप आय रैयी ही।
कोई दौड़’र उण जीप नै रुकवाई। म्है मंगळू नै लैय’र सीधा सफाखाने पूगा। और लोगां रै सागै म्हारो छोटो भाई ई आय पूगो हो। इमरजंसी वार्ड मांय डाक्टरां कोसिस तो पूरी करी। मोटो डाक्टर नब्ज देख’र कनै ऊभा डाक्टर नै कैयो—‘ही इज डेड’ म्है तो समझ गयो, पण लुगावड़ी नीं समझी। आसूं ढळकावती होळै सी’क म्हनै पूछ्यो—‘ओ डेड रो कांई होवै जी?’ अैड़ी अबखी वेळा मांय म्हूं अपणै-आपनै ई नीं संभाळ पाय रैयो हो तो उणनै ‘डेड’ रो अरथ कांई बतावतो? इत्ता में डाक्टर म्हानै बतायो ‘सॉरी, बच्चा मर चुका है, लाश का पोस्ट-मार्टम होने के बाद आप ले जा सकते हैं।’ लुगाई तो इत्तो सुणतांई बठै धाड़ मार’र रोवण ढूकगी। घणी मुश्किल सूं उणनै छाती करा’र भाई रै सागै गांव खिनाई। म्है दोपारां पछै इज लाश लेय’र गांव लोटिया। पछै सिंझ्या सुदि इज दाग लाग सक्यो।
मूमल अपणै आपनै घणां दिनां सुदि संभाळ नीं पाई ही। व्हा बेसुध सी रैवती ही। म्हैं जाणूं हूं, व्हा जीव री काची है। घणी भावुक है। अेकर बळद मरियो जद अर अेकर भेंस मरी ही, जद व्हां रै खातर ई धाड़ मार’र घणी रोयी ही। जिको जिनावरां सारू रोय सकै, व्हा आपरा बेटै तांई तो तड़ाछां खा-खा’र घणी रोयी ही। कई दिनां सुदि व्हा पगलाई सी रैई। अबै म्हैं अठै बरसात री रुत मांय शहर ले आया करूं हूं अर चार-छह महीना अठै इज राख्या करूं हूं। अठै उणरीं तबियत ठीक रैया करै है। अगरचै कदैई तबियत बिगड़ जावै तो उण हिसाब सूं थांरी मदद सूं टेलिफोन लगवाय लियो हूं, सो उणनै फोन माथै साता पूछ लिया करूं हूं। इणनै अठै लावणै रो मकसद इज म्हारो ओ है कै गांव में बेटा रै तांईं हिंजरती आपरी काया बळै, बिसूं तो अठै शहर में सै भुलाय’र साजी-ताजी रैवै। अठै आंवण पछै तन-मन सूं स्वस्थ ईज है। रामजी री मेहर सूं बैंडी नीं होयी, ओ ईज म्हारो सोभाग है- इत्तो केवतां-केवतां मेघा री आंख्यां गळगळी होयगी ही। म्हैं उणरा मोर थेपड़’र धीजो बंधायो।
अेक दाड़ै मेघसिंह अर उणरी लुगाई म्हारै घरै आया तद म्हारी श्रीमती उणां री घणी आवभगत करी, क्यूं कै म्हैं उणनै सगळा हालात विगतवार बता राख्या हा। हंसी-मजाक रो माहौल चालै हो कै इत्ता मांय म्हांकां लाडको बेटो इस्कूल सूं कांधा पे भारी-भरकम बस्तो लाद्यां आटोरिक्सा सूं उतरियो तो मायड़ दौड़’र बस्तो अर पाणी री केतली लेय’र राता सूठ होयोड़ा गालड़ा पे बाच्यो लगायो। गरमी सूं तरबतर बेटा नै घर में लेय’र आवी। म्है तीनूं ओ दरसाव देख रैया हा। बेटो बारणै सूं ईज म्हनै कीं ई बात कैवण सारू ‘डैड डैड’ बोलियो। उणरै बोलतां रै पांण श्रीमती मेघा धाड़ मार’र रोवण ढूकगी अर पछै बेहोस होयगी। म्है लोग फटाफट डॉक्टर ने बुलाय’र सुई लगवाई अर पछै होस आवण पे दवा पिलवाई जद म्है लोग उणरै रोवंण रो कारण पूछियो तो बा बतायो- ‘म्हानै म्हारा मंगळू बेटा री याद आयगी ही। सफाखाना मांय उण बगत डॉक्टर कह्यो हो कै ‘डेड, डेड’ अर म्हांको मंगळू रामसरण। आपरो बेटो ‘डैड, डैड’ कह्यो तो राम जाणै म्हनै पछै कांई होयो, थे इज सगळा जाणो?’ उण टैम म्हैं बीं नै समझायो- ‘भाभी सा, ओ टाबर म्हनै ‘डैड, डैड’ कह्यो उणरो अरथ होवै बाबा सा, बाबा सा,। तद व्हा आपैई हंसता ढूकी तो म्है ई हंसवा लागग्या।
अबै व्हा आस-पड़ौस अर म्हां कै अठै, मन बिलवावणै रै मिस आया-जाया करै है। टेलिफोन माथै बतलावण सगळा सूं दिन मे कई-कई वार गप्पां हांक लिया करै है। फोन रो चोगो उठाय’र खाली सुणणो ईज नीं, अबै तो व्हा जिणसूं बात करणी है, नंबर ई खटाक लगाय लिया करै है, नंबर ई खटाक लगाय लिया करै है। कदैई-कदैई गुमनाम अर अजाण्यां आवण व्हाळा फोन रा लोगां सूं ई मीठी-मीठी बातां कर लिया करै है। अगरचै भूंडी अर सूगली बातां कोई करै तो व्हा उणां नै अेड़ो फटकारै कै दूजी वार बात इज नीं कर सकै। म्हारी श्रीमती सूं उणनै कीं ई घणो ईज लगाव होयग्यो है कै बात ईज मत पूछो। देयां नै अेक-दूजा बिना आसींगे ईज नीं। कांई नीं तो टेलिफोन माथै रसोड़ा में कांई बणियो अर किणरो बंघार दियो तकात पूछ-परछ चालती रैवै।
म्हारी श्रीमती म्हनै बतावती ही कै मूमल भाभी नै आजकल टेलिफोन सूं उणरा बेटा ज्यूं लगाव होयग्यो है। व्हा तो उणनै आपरो बेटो समझ’र ईज वातां कर्या करै है। अै जी, कांई मूमल भाभी बैंडी तो नीं व्हैगी? इत्ती आत्मीयता तो बैंडापणो ईज दरसावै जी? म्है उणनै कैयो –‘भागवान, बीखो जिण माथै पड़ै है, उणरी काया ईज जाणै। थांनै रामजी नीं करै इस्यो बीखो पड़ जावै तो कांई हाल होवै थां रो? कोई नै दिमाग ठाणै राखवा सारू कोई बायनो चाहिजै। व्हा बैंडी नीं है।’
श्रीमती बतावती ही कै आजकाल मूमल नै टेलिफोन सूं घणो ईज लगाव होयग्यो है। घर मांय जद बा अकेली होवै है तद घर रो कामकाज करती वैळा भी टाबरां री नांई बातां करिया करै है। इण नूंवै चसकै सूं उणनै घणो मजो आवै अर मन ई बिलम जाया करै है। मूमल म्हनै बतावती ही कै- ओ कुणक्यो बिचोटियो कदैई तो घणी टैम सुदि बाजैई कोनी अर कदैई बाजै तो बाजतो ईज रैवै। ओ भी माट्टो म्हांका मंगळू ज्यूं केणो ईज कोनी मानै। पछै ढ़ीट मंगळू ज्यूं इणरो ई कान मरोड़ लिया करूं हूं। पछै हंसण लागै है अर मंगळू री मीठी यादावां मांय ऊंडी उतर’र हंसती रैवै है। अबै तो बा हेंस (यस), नो (नहीं), टैंक्यू (थेंक्यू), ओंग नंबर (रोंग नम्बर) बोलवा भी सीख लिया है अर महिला आपरेटर री रिकारडैड टेप बार-बार बाजै है तो बा भजन सुणा दिया करै है—“निकमी रांडा, थांनै कोई दूजो काम ईज कोनी कांई?’ अेक दाड़ै मेघजी उणनै फोन माथै बतायो कै दोय जणां रो खाणो बत्तो बणाइज्यो, पांवणां जीमसी। बा फट फोन नै राख’र पछै मखमली गाबो ओढ़ा’र चौगा नै थपथपावती लोरी गावणै लागी ‘सोय जा, सोय जा, म्हारा फोनिया लोरी लोरी गीगा लोरी, थ्हारै गाय बियाई गोरी, थांरै दादो सा नै बुलावो, म्हारै गीगे रो कोड करावो. लोरी लोरी गीगा लोरी, थांरै दूधां भरी कटोरी...। पछै गुणगुणावती रसोड़ा मांय बड़गी। लसण-कांदा छोलिया, सबजी काटी, मसालो त्यार कर्यो, राई-जीरो ई बगार रै तांई त्यार कर्यो। राई-जीरो ई बगार रै तांई त्यार कर्यो। पछै गैस चेताय’र कढ़ाई चूल्हा पे राखी, तीन-चार टीपरिया डिब्बा मांय सूं काढ़’र उणमें घेरिया। राई-जीरो न्हैखियो, तेल तड़-तड़ करण लाग्यो तो पछै लसण कांदा ने सिलाड़ी माथै चगदेर कढ़ाई में न्हाखिया तो छणण-छणण होवणै लागी। अठीनै फोन री घंटी झणण-झणण बजणै लागी। बा रसोड़ा सूं इज कूकाई- ‘छानो रह रै म्हारा कुणक्या फोनिया? मंगळू ज्यूं क्यूं रीकै है? बा साग बगारती इज उणनै बेटा ज्यूं बठासूं इज जोर-जोर सूं बिलमावण लागी-छानो...रहे रै म्हारा स्याणा फोनड़ा...कानूड़ा रै...।’
फोन बजतो ढबग्यो तो बा राजी होंवती बोली—‘म्हारो फोनूड़ो तो घणो स्याणो अर समझदार है। ल्हू-ल्हू-ल्हू लोरी, दूधां भरी कटोरी...।
गावती-गावती साग ने हिलाय’र थाळी रो ढक देय दीनो, पछै आटो गोंधवा लागी। इत्ता में घंटी फेर पाछी बाजणै लागी। बा अणसुणी आपरो काम करवा लागीं। घंटी तो घंटी ही, ढबणै रो नांव इज नीं लैय री ही तो बोली- ‘रो तूं भी रो? मंगळू ई अयांन ईज म्हूं काम करती ही जद रोया करतो हो, तंग किया करतो हो। तूं भी रो, तूं भी तंग कर। म्हारा आटै सूं हाथ भरिया है। सरम कर थोड़ी रै? पण घंटी तो बाजती इज जाय रैयी ही। अबकै बा बोली-मर आगो, रोवतो रह...।’ पण उणरो मन मानियो कोनी तो रसोड़ा सूं हाथ भरिया आटा सूं आई। फोन नै बड़बड़ावती हाथ आगै कर’र चौगा नै उठावणै इज वाळी ही कै इत्ता मांय घंटी बंद होयगी। उणनै तो गुस्सो आयगो— मर रै आगो? मंगळू भी रुक-रुक रोंवतो हो, थूं ई कांई उण रै ज्यूं ई लखण बायरो अर ढीट है? बा जावणै लागी तो घंटी फेर बाजी, बा मुड़’र आई, जित्ता मांय घंटी बंद होयगी। उणनै अबकै हंस आयगी— बेटा फोनूड़ा, अबै हेलो मति पाड़जै। छानो-मानो सोयजा। बा रसोड़ा में गई तो साग बळवां री बास आई, थाळी रो ढकणो हटायो तो सांचाणी साग तो बळग्यो हो। उणनै अबै कीं ई नीं सूझ रैयो हो। कढ़ाई ने फटाफट हेटै उतारी अर तवो चूल्हा माथै राखियो। बा अबै रोटी बणावण ढूकी।
दो-चार रोटियां उतारीज होवैला कै घंटी बाजी। बा दौड़’र आई अर फोन रो चोगो उठायो- ‘हल्लो? कुण बोले? कांई पूछियो म्है कठा सूं बोलूं हूं? हिया फूटिया म्हूं तो मूंडै बोलूं हूं, पण तूं कांई पूंद सूं बोले है? अेस... अेस...(येस-येस)... मर आगो...ओंग नंबर (रोंग नम्बर)...। गाळियां काडती रसोड़ा में गई, जित्ते तो रोटी बळ’र काळी दट्ठ ढाकणी होयगी। तवा माथै पापड़ी चेटियोड़ी नै खुरचणी सूं खुरच’र साफ करी। पछै रोटी बेल’र दूजी तवा माथै न्हांकी, तवो गरम हो, उणनै फेरे-फेरे जित्ता मांय तो अेक कांनी सूं बळगी। बा आंच कम कर’र अधबळी रोटी उतार’र दूजी रोटी तवा माथै फट न्हांकी। इत्ता में घंटी बाजी, बा मन मांय सोच्यो—छो बाजै तो बाजै, गीगलो थोड़ी है कै रोवतै नै सगळा काम छोड’र चुप कराऊं? अेक-दो रोटियां ठीकसर बणाई, बठै तांई घंटी बाजै इज ही, उणरो मन नीं मानियो। तवा पै सिकी रोटी ने ई उतारणो भूलगी। जाय’र चोगो उठायो। पाड़ोसण रो फोन हो। बा पूछणै लागी—‘कांई रोटी बटका सूं निवड़ग्या?’ बा बोली- ना, बोल काम कांई है? पाड़ोसण बोली—गांव सूं म्हारी लड़ोकणी सासू मां आय रैयी है, बतावो न कांई करूं? म्हारो तो काळजो धूज रैयो है अर जीव बळ रैयो है। मूमल बोली— काळजो तो म्हारै ई धूज रैयो है। अबार दुपारां में घरै पावणां जीमणै तांई आय रैया है अर ओ फोनूड़ो म्हारो साग जळाय दियो नै रोटियां ई बळाय दी, थारै पैली म्हारो जीव बळग्यो है, अबै थूं ई बता म्हैं कांई करूं? पाड़ोसण सुझाव दियो—‘धणी नै फोन कर’र खाणो होटल सूं मंगाय लो? बा बोली— अरे हां, थांरो सुझाव दाय आयो म्हनै। फोनूड़ां नै हेठै राख झट। पाड़ोसण बोली— ‘ऊं हूं, पैली म्हारी आंकड़ी ई सुलटावो तद राखूं? उणनै रीस तो आई पण समाव खांवती पूछियो—थारै सांसरै में घरै तो फोन है नीं? पाड़ोसण हामळ भरी तो बा सुझाव दियो—‘तो बोल दे अठै माताजी आयोड़ी है, अबार मत आवज्यो। पाड़ोसण बोली—‘पण म्हारी मायड़ तो सुरग पधारोयोड़ा है, अठै कियां आय सकै है? अस्यो सपाट झूट थोड़ी चाल सकै है? मूमल बोली—‘थांरो माथो। अरे छोटी नीं, बडी माताजी। बोदरी नीं, अचपड़ो अचपड़ो...ज्यूं ईज कोई बेमारी अठै शहर में फैल रैई है। अबै राख फोन...।’
मूमल ई फोन नै राखियो, पछै रसोड़ा मांय जाय’र देखे तो आखरी रोटी ई बळ’र खेलड़ो होगी ही अर हाल भी उण तवै माथै धुंवो ऊठ रैयो हो। बा रीस में फोन पै बिगड़ती गैस बंद करवा लागी—ओ फोनूड़ो तो म्हनै रांध’र खायग्यो। अबै पावणां नै म्हूं जीमास्यूं कांई म्हारा कुणक्या? उणनै पाड़ोसण री अमोलक सलाह याद आई। बा बैठक में फट करती आई अर फोन रो चोगो उठावण वाळी इज ही कै इत्ता में घंटी बाजी। बा बड़बड़ाई—म्हाटी म्हूं जद काम करूं हूं, जद ईज तंग करै है। कोनीं उठाऊं, रो...रो नेठाव सूं, म्हूं भी फुरसत में हूं।’ इत्ता में उणनै याद आयो बीं नै तो मेघजी ने फोनूड़ो करणो है। ओ कुणरो बळै है? बा फोन उठायो—अेस? कांई? कुण? ओंग नंबर...ओंग नंबर। बा चोगा नै हेठै राख देवै। फैर घंटी बजी। बा फोन उठायो—अरे हिडीकाडिया क्यूं तंग कंरै है रै? बठीना सूं आवाज आई—हलो मूमल? मूमल? म्हैं मेघो बोलूं हूं। हां...हां...दो घंटा सूं फोन लगाय रैयो हूं, कै तो अंगैज आवै अर कै घंटी ई बाजती रैवै? कीं बात है, तबियत तो ठीक है ना थारी? कांई? ठीक है? तो फोन उणाणै री इत्ती ई फुरसत नीं है कांई? सुण भागवान, पांवणां अर म्हारै वास्तै खाणो मतं बणाइज्यै? होटल में पारटी जीमण है? कांई? बणाय लियो? अबै खांय कुण? अगरचै टैमसर फोन उठाय लेवती तो ओ नुकसाण तो नीं होवती? कोई बात नीं सिंझ्या नै ठंडो जीम लेस्यां। कांई नुकसाण होयग्यो? कियां? खाणो बळग्यो? अरै थंनै कित्ती बळ्यां बोलूं हूं कै इण फोन रा चक्कर में मत पड़। पण थारै समझ ईज नीं आवै है? इण मैकमा मांय काम करतां थकां भी थंनै ठा है, बिल कित्तो आय रैयो है? बा थारै थूं जाणै। म्हैं तो होटल में जीमवा जाय रैया हां...।’ मूमल आ सुण’र फोन पै भुटणै लागी—‘अरे ठाला भूला, आज तो थूं मंगळू ज्यूं इज म्हनै घणी सताई रै।’
अेक दाड़ै म्हारी श्रीमती म्हनै कैयो—अै जी, मेघजी भई साब रो टेलिफोन दस पंदर दिनां सूं खराब चाल रैयो है। मूमल बतावती ही कै इण राखड़िया ने कांई बैमारी लागगी है। डागदर-वागदर नै बुलावो न आगौ? मेघजी भईसाब कंपलेन ई लिखाय मैली है, पण हालतांई कोई सुणवाई नीं होई है, थे चालू करवाय दो न? बा उणनै रोजिना पूंछै-पंपोळै अर पछै लाड-कोड करै। आंसूड़ा ढळकावै।
म्हैं श्रीमती नै कैयो—भागवान, बिरखा री रुत मांय आं दिनां शहर रा घणखरा टेलिफोन डेड चाल रैया है। लाइनां खराब पड़ी हैं। फेर भी म्हैं कोसिस करूंला, पण मूमल ने बताय दीज्यै के अेक-दो दाड़ा तो लाग जासी।
श्रीमती तीन-चार दाड़ा पछै म्हनै बतायो—फोन तो ठीक होयग्यो जी आपरी वजै सूं, मूमल आपनै टैक्यूं खिनायो है। म्हैं हंसवा लाग्यो। म्हारो हंसणो बंद होयो, जद श्रीमती बोली—मेघजी भी तांनै घणो-घणो धन्नवाद कुवायो है। बै बतावै हा कै भोजाई जी, भाई जी रै मैकमा सूं फोन ठीक करणै नै कोई मिनख आयो हो, उण टैम म्हैं घरै ईज हो। बो लाईनां चैक करी, पछै टेलिफोन चैक कर’र बोलियो बरसात के कारण शहर की ज्यादातर लाइनें खराब चल रही हैं। इसलिए आपका टेलिफोन भी खराब है। इसमें भला क्या कर सकता हूं। योअर टेलिफोन इज डेडा’ इत्तो केह’र बो तो चल्यो गयो अर पाछै मूमल धाड़ मार’र रोवण ढूकगी—म्हारा मंगळू ज्यूं थूं भी डेड? अबै म्हूं कांई करूंला रै, थ्हारै बिनां कियां जीवूंला रै? हीं...हीं...हीं...। आस-पाड़ौस रा लोग आयगा हा, जाणै म्हैं उणनै कोई कारण सूं कूट रैयो होऊं। पाड़ौसी मूमल रै रोवण रो कारण बूझवा लागा तद म्हैं बां नै विगतसर बात बताई तो बै सगळाई हंसवा लागग्या। पछै म्हैं सगळाई मिल’र उणनै छाती कराई अर पछै योअर टेलिफोंन इज डेड’ रो अरथ बतायो कै इणरो मतलब टेलिफोन आपरो खराब हुयग्यो है। तद जाय’र उणरै मन में शांति होई।
कोई महीना डोढ महीना पछै श्रीमती म्हनै बतावै ही कै आजकाल मूमल भाभी टेलिफोन सूं घणई कायी है। बा बतावती ही कै—ओ फोनूड़ो तो म्हारो दुसमी होंवतो जाय रैयो है। जद कदी म्हूं संडास में बड़ियोड़ी होऊं, उणीज बगत घंटी बाजै। कई वळियां संडाज में जाय’र बैठूं अर घंटी बाजै। दो-चार बगत तो सिनानघर मांय सूं सिनान करतोड़ी ई न्हाठ’र आई तो किणी छैल-भंवर री मसखरी भरी बातां सुणबानै मिली। जाणै म्हनै बो सरियांत देख रेयो होवै। गाणा गावै अर कठैई मिलवा रै तांई नैवरा करै? अेक छोरी सीक रांड रो ई फोन्यो आवै मेघजी रै तांई। कदैई मेघजी रै बारै में पूछै अर कदैई मेघजी समझ’र चटकी-मटकी बातां करै। म्हां दोयां रै बिचाल छैल-भंवर अर उण सौक रांड री बातां ने लेय’र रोजिना कजिया हुवै है। अबै तूं ई बता कै म्हूं करूं तो कांई करूं? म्हारो मेघो इयांलको है तो कोनी, पण म्हनै कदै-कदै संका होवण लागै है! मालजादी रंडकी अेक दाड़ै तो घरै ईज आय टपकी जद मेघजी घरै इज हा। व्हांसू व्हा असी चटक-मटक बातां करै ही कै पूछ मत। म्हनै गुस्सो तो घणोई चढ़ियो पण घर री लाज रै खातर समाव खायगी। अेक दाड़ै व्हो छैल-भंवर ई घरै आय टपकियो। बारणा री घंटी बजाई तो म्हैं बारणो खोलियो। व्हो तो पट्ठो बेसरस सोफा (सोफासेट) माथै धूंसौ जमाय’र बैठगो। छैल-भंवर म्हारो हाथ पकड़वा री कोसिस करै हो, म्हूं तो अेक जोर की थपैड़ की अर पेट में लात मारी तो पाछो सोफ्ठा पै ढेर। ओ दरसाव बारणै ऊभा मेघजी देखे हा। छैल-भंवर तो चांटी देय दीवी अर अबै म्हनै काटो तो खून ईज नीं। बै म्हारा माथै लांछण लगावा ढूका तो म्हैं ई उण सौक रांड नखराळी रा आच्छेप लगाया। भाईसाब नै केय’र इण फोनूड़ा नै तुरन्त अठा सूं बाळो आगो। म्हनै नीं चाहिजै। बा हाथ जोड़’र अरज ई करी के आज या काल तांई इणनै हटवाय दी। म्हैं पछै फोन रो कनेक्शन कटवाय दियो। श्रीमती पछै केवण लागी कै मूमल अठै घरै आवी अर बोली, व्हा गाम जावणै चावे है। अठै औरूं रैई तो घर भांग जासी अर बदनामी न्यारी होसी।
म्हैं श्रीमती नै पडूत्तर दियो—‘घर वर कोई नीं भांगैला। मूमल रो मोह भंग करणऐ सारू इज आ सगळी करतूत कैवो कै अटकळ मेघजी री ईज है, म्हनै वो ईज बतावतो हो।’ श्रीमती हंसवा लागगी अर तुरन्त मूमल कनै घरै पूगी अर सगळी बातां बगतसर उणनै बताई। बा तो गांव जाबा सारू त्यार कर रैई ही। इत्ती बात सुण’र बा बोली—‘ओ म्हारो कुणक्यो बिचोटियो जबर निकळयो। फोनूड़ा रै तो अबै नेड़ी ई नीं फटकूं म्हूं तो....।