संकर आपरै डील माथै सूं गूदड़ी आगी नांखी। हाथ सूं आंख्यां मसळी अर चिमनी रै मधरै उजास में च्यारूंमेर देख्यौ। रूपा कठैई निगै नीं आई।

संकर आंख्यां पै जोर देय’र अेक दांण फेरूं अठी-उठी देख्यौ अर पछै कांन लगाय’र सुणवा लाग्यौ। कनली कोठड़ी में धमाधम होय रैयी ही। संकर उठ’र हाथ में लाठी लींधी अर होळै-होळै छांनौ-मांनौ कोठड़ी रै दरवाजै तांई पूगौ। सांस रोक’र लालटेण रै उजास सूं भरी कोठड़ी में देखण लागग्यौ।

देखतौ दंग रैयग्यौ। रूपा कुदांळी हाथ में लियां आंगणौ खोदण में लाग्योड़ी ही। संकर जोर-जोर सूं हंसण लाग्यौ।

रूपा खोदती-खोदती मुड़’र आपरै धणी कांनी देख्यौ अर मुळकण लागी।

“लालटेण रौ उजास नीं होवतौ, तौ अबार लट्ठ थारी खोपड़ी में बाज जावतौ।” संकर हंसतौ थकौ बोल्यौ।

“ठीक रैवतौ। थांनैं छुट्टी मिळ जावती अर मजै सूं दूजी लेय आवता।”

“चुप रह गैली, कांई बकै है। पछै म्हारै जीव री जड़ी रूपा नैं कठै सूं लावतौ?” उण रूपा नैं बाथ में लेय’र हिवड़ै रै चेप ली।

“छोडौ, छोडौ, म्हनैं कांम करण दौ।”

“औ कांई उथळ-धड़ौ करै है बडी मिनख? घर पाड़ चबूतरौ बणावण री कांई सूझी थनैं?”

“धन-माल काढ रैयी हूं।”

“धन-माल? अरे गैली, अठै-कठै धन-माल पड़्यौ है?”

“किंयां नीं होसी? सगळा लोग कैवै कै थांरा बडेरा खूब माया वाळा हा। पछै वा सगळी मांया गई कठै? अठैई व्हैणी चाईजै घर में कठैई।”

“गैली है रूपा थूं! लोग-बागां री बातां माथै विस्वास करै। रही होसी माया मता कोई जमांनै में इण घर में। म्हारी देखणी में तौ ऊंदरा इग्यारस करता दीख्या। थाप देयनै रातौ मूंढौ राखता। सगळा बाटी साटै रेहट बाळै जिसा। खेत तकात लोगां कनैं गिरवी पड़्या हा। म्हैं छुडाया नीठ खूंन-पसीनौ अेक कर नै।”

“पण म्हारौ मन तौ कैवै कै इण घर में धन है जरूर। म्हैं तीन दिनां सूं सुपनै में बरोबर नागदेवता रा दरसण कर रैयी हूं। बूढा-बडेरां रौ कैवणौ है कै जिण मिनख नैं सुपनै में नागदेवता दीसै, वीं नैं गडियोड़ौ धन जरूर मिळै। वीं दिन भोपै तौ थांरौ हाथ देख’र बात कैयी ही।”

“म्हनैं भोपा-डोफां अर सुपनां-फुपनां में अंगां विस्वास कोनी। खोद्यौ जिकौ घणौ, अबै क्यूं फिजूल आफळै। चाल मजै सूं नींद खांचा।” संकर नैं उबासी आयगी।

“म्हैं खोदूंली।” रूपा अड़गी।

कोठड़ी रौ आंगणौ खासौ भलौ खुदग्यौ हौ। थोड़ी-सो’क बाकी हौ। अठै मक्की सूं भर्‌योड़ा डाकीमटका पड़्या हा अर खूंणै में कुदाळा, फावड़ा, दांतळा अर सण री डोरियां रौ ढिग पड़्यौ हौ।

“आं मटकां नैं थोड़ा सरकाय दौ नीं, अठै री जमीन पोची लागै। अठै व्हैला सगळौ माल।” रूपा ऊंधी कुदाळी सूं जमीन ठपकारती खुसामद करती बोली।

“म्हनैं इसा फालतू कांमां खातर फुरसत कोनी। म्हैं तौ जाय’र सोवूंला।”

“सो जावौ भलांई, पण धन-माल मिळग्यौ, तौ अेक धींगली नीं मिळैला, याद राखजौ।” रूपा अंगूठौ दिखावती बोली।

“मत दीजै, मत दीजै। म्हारै बाहुड़ां में बळ है। खरी कमाई कर नै खाय लेसूं। थारै कनै सूं कोनी मांगूं।” कैवतौ थकौ संकर आपरै ठायै जायनै सोयग्यौ। नींद उडगी। अबै वा आवणी दो’री ही। खासी ताळ संकर नैं चीजां री उठापटक अर मटका अठी-वठी सरकावण री आवाज सुणीजती रैयी। पछै...

“सांऽप सांऽऽप। हाय रांम दौड़ौ।” रूपा हाकौ कियौ अर संकर गूदड़ी आगी नांख’र नाठौ। रूपा हाथ झटक रैयी ही।

“सांप, वो देखौ बैठौ है। हाथ में बटकौ भर लीधौ। हाय रे!”

अटाळै में अेक काळौ भुजंग विसधर बैठ्यौ जीभ लपकारै हो। आंख्यां काच री दांई चमकै ही। संकर रीस में बावळौ होयग्यौ। वीं लाठी उठाई अर मार-मार नै सांप रौ कचूमर काढ नांख्यौ।

अबै संकर नैं रूपा रौ ध्यांन आयौ। वा अबार ऊभी थकी हाथ झाटकै ही अर रोवती जावै ही। पापी जीवणै हाथ रै पुणचै कनै डाचौ भर् ‌यौ हौ। संकर रूपा री चूनड़ी सूं लीरौ फाड़ण लाग्यौ, तौ वा बोली, “कांई करौ हौ? दूजौ लूघड़ौ कठै है म्हारै कनै।”

“थूं छांनी रैयजा। जीवतां रैयग्या तौ थनैं साड़ियां सूं लाद नांखसूं।” कैवतौ थकौ संकर, रूपा रै पुणचै ऊपर कस’र चींथरौ काठौ बांध दियौ।

“थूं बैठजै, म्हैं किसनौ बा नैं बुलाय नै लावूं। देख नींद मत लीजै।”

किसनौ बा हाथ में नींबड़ै री दो-तीनेक नेन्ही-नेन्ही झमरियां लियां आया। मंत्र पढ’र फूंक मारी अर झाड़ौ देवण लाग्या।

पंदरै’क मिनट झाड़्यां पछै किसनौ बा बोल्या, “अबै इण नैं नींबड़ै रा पांनड़ा चखावौ।”

संकर झट च्यार-पांचेक पांना रूपा नैं झिलाया।

“कड़वा लागै कांई?” संकर उतावळ में पूछ्यौ।

“नीं, मीठा है।” रूपा पडूत्तर दियौ।

संकर निरासा सूं माथौ धूंणियौ, “फेरूं झाड़ौ देवौ किसनौ बा।”

किसनौ बा घंटै भर तांई झाड़ता रैया, झाड़तां- झाड़तां वां नैं उबासियां आवण लागी। पण रूपां नैं नींबड़ै रा पांनड़ा मीठागट्ट लागता रैया। हार खाय नै किसनौ बा बोल्या, “सांप घणौ ओटाळ है संकर। म्हारी मैनत म्हैं कर चुक्यौ। अबै थूं इण नैं देवरै लेय जा। भैरूं बाबौ सामरथ है। आरांम करसी।”

सैणां-समझणा आप-आपरी समझ मुजब निरा उपाव कीधा। किणै बांवळियै री सूकी पत्तियां री चिलम पाई, किणी केळ रै पत्तां रौ रस काळी मिरचां सागै घोट’र पायौ, किणै कांई कीधौ तौ किणै कांई। यूं करतां रात ढळगी। दिन री उगाळी होवण लागी। सेवट सगळा राय दीवी कै अठै रा इलाज तौ सै होयग्या, अबै तौ इण नैं सै’र लिजावौ जिकी बात करौ। मोटै अस्पताळ मांय गयां इंजेक्सन देतां ज्हैर उतर जासी।

संकर रूपा नैं लेय’र गांव सूं तीन किलोमीटर आंतरै बस-अड्डै माथै पूग्यौ। थोड़ी’क ताळ में अेक बस आई। संकर हाथ ऊंचौ कियौ। अबार बैठ्या अर पूग्या। पण बस तौ किणी घमंडी राजरांणी री दांई भर्रर्र करती निकळगी।

वो निरास होय’र रूपा कनै बैठग्यौ। अेक्सप्रेस ही... जैपुर वाळी होसी। ड्राइवर इसारौ दीधौ कै लोकल लारै आवै। संकर रूपा नैं समझावतौ बोल्यौ, “थूं घबराव मत, आंख्यां खोल। अबार पूग जासां। आज रा डाक्टर दूसरा भगवांन है। थैलै में मर्‌योड़ौ सांप सागै लायौ हूं। सांप देख्यां सही इलाज होवै। देख!”

दूजी बस आवण में आधौ घंटौ लागग्यौ। गड़गड़ाहट सुणीजी, तौ संकर बोल्यौ, “बस आयगी, झपकी मत लै, उठजा रूपा!”

रूपा खुद आपौ-आप नीं उठ सकी। संकर अेक हाथ सूं रूपा रौ बाहूड़ौ पकड़्यौ अर दूजै हाथ सूं बस नैं इसारौ कीधौ।

बस धीमी पड़ी अर संकर रै हिवड़ै री धड़कणां बधगी। अबै म्हारी रूपा जरूर बच जासी।

...फुर्र र्र।... फुर्र र्र...। बस नैं धीमी पड़ती देख’र कंडक्टर डबल सीटी मारी। बस पाछी रफ्तार पकड़ ली। संकर रै दिल री धड़कणां रुकती-सी लागी। आंख्यां आगै काळा-पीळा झांवळा-सा आवण लाग्या।

“बैठ रूपा, गांवड़ां में जलम लेवणौ पाप है।”

संकर सोचण लाग्यौ— जांणै कितरा-कितरा सांप फण ऊंचा कियां अविस्वास, असुविधावां अर अव्यवस्था... कितरा-कितरा सांप।... जिका असली सापां सूं बेसी खतरनाक... बेसी ज्हैरीला।

अठीनै रूपा बैठतां गुड़कगी।

“रूपा, हिम्मत राख। देख अबार बस आवै, बैठ जा।”

“नीं...बैठ... नीं... सकूं।”

“अरे थारी तौ जीभ तोतळीजै, लोळावळै। हे भगवांन!”

रूपा रौ गोरौ-निछोर डील धीरै-धीरै सांवळीजण लाग्यौ। होठां माथै पापड़्यां जमण लागी। कनै नीम रौ दरखत हौ। संकर अेक डाळकी तोड़ पानड़ा सूंत्या, “ले रूपा, चाख देखांणी, कींकर लागै?”

रूपा जमीं माथै सूती-सूती पानड़ा चाब्या, “अबै कड़वा लागै।” उण कैयौ अर थोड़ी-सी’क मुळकी। संकर नैं समझतां देर नीं लागी कै रूपा उण रौ मन राखबा सारू झूठ-मूठ कैय रैयी है। रोकतां-रोकतां वीं री आंख्यां सूं आंसूड़ा टपक पड़्या। रूपा देख’र दुखी होयगी।

राज्य परिवहन री अेक औरूं बस आवती दीसी। संकर रूपा नैं टेकौ देय’र ऊभी कीधी। अबै वा ऊभी नीं रैय सकी। वीं नैं खांधां पर लादणी पड़ी। संकर बस नैं हाथ सूं इसारौ कियौ। बस धीमी पड़ी अर थोड़ी आगै जाय’र रुकगी। संकर रूपा नैं खांधै माथै लाद’र अेक हाथ में मर्योड़ै सांप री थैली पकड़्यां दौड़्यौ।

ठसाठस भर्‌योड़ी बस सूं अेक सवारी उतरी अर भड़ाक करती दरवाजौ पाछौ बंद होयग्यौ। कंडक्टर बोल्यौ, “चल्लौ।” संकर जाय नै बस रौ दरवाजौ जोर सूं भचीड़्यौ, जितरै बस रवानै होयगी। कंडक्टर बारी सूं मूंढौ काढ’र बोल्यौ, “लारै बस सफा खाली आवै।” ... अर बस भर्र र्र... करती गई परी।

संकर ठेट पांणी रै कनै जाय नै तिसायौ रैयग्यौ। वीं रौ चेहरौ रीस अर निरासा सूं रातौचोळ होयग्यौ।

नीलै थैलै में काळौ सांप। संकर मन में बड़बड़ायौ। उण रूपा नैं आपरी गोदी में लीधी। रूपा रौ सोवणौ रंग नीलौ छम पड़ग्यौ। संकर नाड़ी देखी, तौ सफा धीमी चालै।

“थे... ब्याव... कर... लीजौ।” रूपा नीठ होळै-होळै बोली।

“यूं मत बोल रूपा! रूपा यूं मत बोल।” संकर रौ धीरप टूटण लाग्यौ। पूरै डोढ घंटा पछै बस आवती दीखी। संकर नैं यूं लाग्यौ जांणै कोई भयंकर विषधर फंफड़ा करतौ आय रैयौ है। वीं आपरी गोद में बेहाल पड़ी रूपा नैं कैयौ, “रूपा, उठ बस आयगी। अबकाळै म्हैं बस रै आडौ सोय जासूं। जरूर...

पण रूपा कठै ही, जकौ संकर री बात सुणती। हंसलौ कदैई उडग्यौ। संकर वीं नैं झंझेड़ी, “रूपा, आंख्यां खोल रूपा! देख, बस आयगी।” पछै नाड़ी देखै तौ बंद। वो कुरळायौ, “मार नांखी...सांपां मार नांखी रूपा नैं... म्हारी रूपा नैं।”

संकर अधगैलौ होवै ज्यूं कूकण लाग्यौ। भाठौ हाथ में लेय’र ड्राइवर कांनी काच माथै ठरकायौ।... कड़ंद करतौ काच टूट्यौ अर बस जोरदार झटकै साथै रुकगी। ड्राइवर उतर्‌यौ, कंडक्टर उतर्‌यौ, सवार्‌यां पण उतरी।

काच रा टुकड़ा ड्राइवर रै मूंढै रै लाग्या। मूंढौ खून सूं लथपथ।

“म्हैं सांप रौ फण झगद नांख्यौ, अबै म्हारी रूपा नैं किंयां डसैला?” संकर दूजौ भाठौ उठाय’र कंडक्टर कांनी फेंकण रौ मतौ कियौ उण पैली’ज दो-तीन सवारियां आगै आय’र वीं रा हाथ पकड़ लिया।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : माधव नागदा ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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