उतर्‌यो उतर्‌यो चेहरो लागै

घाव काळजै गहरो लागै

कैवां किणनैं मन री बातां

सुणणै वाळो बहरो लागै

किणी राज रै दफ्तर जावो

मांगणियां रो डेरो लागै

कियां उजड़गी गांव गुवाड़ी

कुण रो पगफेरो लागै

आंख्यां सूं आंख्यां मिलतां

क्यूं मिनख भलेरो लागै

आळस छोड जाग रे मनवा

होग्यो अबै सवेरो लागै

बठै न्याय री आसा नीं है

जठै साच पर पहरो लागै

आदर रा हकदार बै, जिणनै

सेवा काम सुनहरो लागै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : शंकरलाल स्वामी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़)
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