राखोड़ो व्हे जाई जी।

तन यो थारो लाई जी॥

बाबाजी धूणी तापो

कर र्‌या कस्यी कमाई जी?

ईं ऊं ऊंचो कुंण जग में

भारत सब रो भाईजी।

मीराजी मासी अपणां

भुआ लच्छमीबाई जी।

सुत अपणो बलिदान कर्‌यो

धन-धन पन्नाधाई जी।

गुरु-गोपण ऊं 'गुप्तेश्वर'

गोळा-ग्यान वकाई जी।

स्रोत
  • पोथी : फूंक दे, फूंक ,
  • सिरजक : पुष्कर 'गुप्तेश्वर' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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