प्रीत मनड़ै में जगा

दोस्त देवै है दगा

किण माथै विस्वास करां,

कोई नीं किण रा सगा

माल बेच उधार भाया,

खुद रै हाथ खुद नैं ठगा

अंधारै सूं बारै निकळ,

चांदणो थारै मन में जगा

छोड सुपना देखणा,

नींद आंख्यां री भगा

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : अब्दुल समद ‘राही’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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