मिनख मिनख रो बैरी क्यूं है

घिरणा री जड़ गैरी क्यूं है

क्यूं समझै हेटा दूजां नैं

अकल मिनख री जैरी क्यूं है

नीं लायो नीं लेजावै कीं

फेरूं तेरी मेरी क्यूं है

लालच लोभ ईरखा धोखो

बुद्धि धन री चेरी क्यूं है

दीखै पक्या आम सा मीठा

बातां खाटी कैरी क्यूं है

स्वारथरगत रमै रग-रग क्यूं

घर-घर हेराफेरी क्यूं है

इण ढंगढाळै पण दुनिया

तो आस सुनहरी क्यूं है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : शंकरलाल स्वामी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़)
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