आभै में घटावां कोई गा रह्यो गजल

सोनलिया आखरां में कुण लिखवा रह्यो गजल

कुण मोतियां री झालरां सूं भर दियो आभो

कुण सुरीली मीठी सरस बरसा रह्यो गजल

उपवन में फूलां रै बिचै भणकार झणकारां

कोई निरत में मगन गुणगुणा रह्यो गजल

बहती हवा फिरै लियां तोफो सुगंध रो

बागां में रमतो मोरियो सुणा रह्यो गजल

सरवर किनारै डेडरां री पोसवाळ में

कोई गुणी गुरु जबर भणा रह्यो गजल

धरती री हरी ओढणी में है जड़्या मोती

पण 'लाल' री ऊंधी अकल बता रह्यो गजल

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा जनवरी-मार्च 2015 ,
  • सिरजक : शंकरलाल स्वामी ,
  • संपादक : अमरचन्द बोरड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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