जद ठंडी मधरी पून चलै
रे! चमक चानणी रात, धोरियै बैठ गीतड़ो गाऊं
जद ठंडी मधरी पून चलै।
मरुधर मुळकै हिवड़ो हुळसै जद छम-छम नाचै चानणी
पून बजावै मधुर बांसरी, कानां घणी सुहावणी
मन री मीत चानणी संग हूं, जी भर मन बहलाऊं
ईं धोरां री मखमली सेज पर लिपट-लिपट लिट जाऊं
जद ठंडी मधरी पून चलै।
कळी-कळी खिल जावै मन री, अंग-अंग मुस्कावै
रे तिसिया नैण तूठ कुदरत पर, दे आसीस सरावै
हिवड़ै में हरियो हेत लियो, पलकां में प्यार सजाऊं
आभै में जड़ियै चांदड़लै सूं घुळ-घुळ नैण रिझाऊं
जद ठंडी मधरी पून चलै।
रे डेरां बीच चरावै रेवड़ ऊभो पाळ रेवड़ियो
अळगूंजां री मधुर तान सुण चंदो आभै ढळियो
जद झीणी नींद आण नै लागै घर नै हूं टुर जाऊं
रे डिगतो-पड़तो मस्त चाल सूं घर में आ सो जाऊं
जद ठंडी मधरी पून चलै।