तजगी बाबुल को दुलार

सखी सहेल्याँ की मनुहार

जामण का हिवड़ा की झाळ

भायां की आंख्याँ की पाळ

घर को परदेशी सूं छलाई होगी रे

आज म्हारी लाडलो परराई होगी रे

जब सूं तू गरभासे धारो नमळो काया होगी म्हारी

जो दन तू घर में जाई लिछमा बाळक बण उतरयाई

सोळा कळा चांद की छटकी घर की काळी हटगी

सूखा बाग फूल मुसकायो रात्यूं ही सूरज उतरयायो

स्योक्या कळपो थनै देख पण कुण मेटै विधि का लेख

मरूधरा में दूधां की तळाई होगी रे

आज म्हारी लाडली पराई होगी रे

‘धो-धो हाथ’ पूराळी पाळी के राताँ आंख्यां में गाळी

आलो म्हूँ भोग्यो री कोयल थारै सूखी गीदी राळी

गरियाळा को छो सिणगार घर सूं खडती दूधाँ धार

बाबुल देख्यां धीरज धरतो सहेल्यां के बीचै सार

बीरा को घर सूनो करगी लडवण घर की रिध-सिध हरगी

तू बिन, बांगणिया की नीमड़ी मुरझाई होगी रे

आज म्हारी लाडली पराई होगी रे

जब तू हँसती झड़ता फूल बोली कोयल रहती भूल

थारा पावां की ठोकर सूं चदण होगी री कोयल धूल

जब तू सोती आती रात जाग्या ही होती परभात

केश बिखरता छाता मेघ भरमाती मरयां की जात

बैरण कैया हेत कुतरतो परदेशी की गैल उतरगी

भोजायां की बाल्यां ने सबाई होगी रे

आज म्हारी लाडली पराई होगा रे

तू जातांई ऊंदाळो छायो बाड़ा को बूँळ्यो मुरझायो

सूख्यो तू बिन नंदी नोर तीराँ आँसू पूरै की’

भूली छानै चीजां खाबो काती न्हावो ईशर गाबो

कुण सूं करती होगी बाताँ भूली कस्यां खेल की रातां

रहगी धरी कटोराँ खोर हेला पाड़ै बाळक बीर

दुफैरी की लाई में तिसाई होगी रे

आज म्हारी लाडली पराई होगी रे

कस्याँ लगाऊं थंपै दोष बैरी जोवण लेग्यो कोस

बाबुल अपणो कर्ज उतारयो धीरज धर मत करजै रोष

जग की या होभाळी रीत छत नै रोक्याँ राखै भोंत

जाणै घर ही न्हं जाई साची कर पैला को प्रीत

मायड़ का नैणा झड़ लाग्या बीरा देख, मूर्छा खाग्या

उगी बेलड़ी घर, ऊं घर छाई होगी रे

आज म्हारी लाडली पराई होगी रे

स्रोत
  • पोथी : ओळमो ,
  • सिरजक : मुकुट मणिराज ,
  • प्रकाशक : जन साहित्य मंच, सुल्तानपुर (कोटा राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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