चीं चीं च्युप च्युप च्यारूं मेर

आं पंछ्यां री घेर घुमेर

हरिया भरिया रूंखड़ळां में—

राम भजन री लागी टेर

चीं चीं च्युप च्युप...

उड-उड बैठै उचकै फुदकै, अै पंछी मन मोवणा

सिन्दूरी आभै रै हेठै, चहकै पंछी सोवणा

झीणी झीणी अन्धारै री, चादर तणती जाय

पींपळ पानां सूरज किरणां, छिन छिन छणती जाय

जाणै कंई अै भणती जाय?

चीं चीं च्युप च्युप...

पून चले नागोरण पंछी, सिचला अै कद रैवणियां

अै बिजळ्यां पाखां में दाबै, इकळंग पंथी बैवणियां!

सुंई सांझ पिरभात मंडै, आं पंछीड़ा रा मेळा

मरुधर रै परबार कठै आ, सुगणी मंगळ बेळा?

इसड़ो रूप कठै दरसाय?

चीं चीं च्युप च्युप...

देखो रे! कोई नान्हा चिड़िया, होळै-होळै बोलै

सागै सागै अै मायड़ रै, डाळां-डाळां डोलै

घणा बेसुरा कागा नुगरा, बैठ्या घात लगाय

एकैई साथै रूंखां रूंखा, सरणाटो छा जाय

जीव नै जीव घणो संताय

चीं चीं च्युप च्युप...

स्रोत
  • पोथी : मोरपांख ,
  • सिरजक : ओंकार पारीक / ओंकार श्री ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य अकादमी (संगम) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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