यहु तन जारी मसि करूँ, धुँआ जाहि सरग्गि।

मुझ प्रिय बद्दल होइ करि, बरसि बुझावइ अग्गि॥

भावार्थ:- यह तन जलाकर मैं कोयला कर दूँ और उसका धूंआ स्वर्ग तक पहुँच जाय।मेरा प्रियतम बादल बनकर बरसे और बरसकर आग को बुझा दे।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : डॉ. मोतीलाल मेनारिया
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