आभै छिटकी चानणी, तारां छाई रात।
आवो म्हारा सायबा, करल्यां मन री बात॥
नैणां सुरमो सारियो, ओढ़ कसुबंल चीर।
पीव बसै परदेस में, कुण बंधावे धीर॥
मौसम हुयो सुहावणो, नाचै मन रो मोर।
घरां पधारो सायबा, काळजियै री कोर॥
मेड़ी बैठ्यो मोरियो, ताक रियो आकास।
गोरी पिव-पथ ताकती, मनड़ो घणो उदास॥
चंदा थारै चानणै, डागळ ढाळी खाट।
पिव परदेसी आवसी, ऊभी जोवूं बाट॥
नैण धार तलवार ज्यूं, होंठ पांखड़ी लाल।
पीळी ओढ़ी ओढ़णी, सायब हुया निहाल॥
सुण म्हारी प्यारी सखी, लिख पिव नै संदेस।
बेगा आवण कह गया, भूल्या मरवण देस॥
काळी-पीळी बादळी, गजब घटा घणघोर।
अवनी रूप निखर गयो, मुरझाई पिव गोर॥
मेड़ी बैठ्यो कागलो, मरवण सुगन मनाव।
आवै म्हारा सायबा, मन में घणौ उमाव॥
सावण आवण कह गया, लिखियो नह संदेस।
पिवजी आप पधारज्यो, धोरां आळै देस॥
कर सोळा सिंणगार धण, ऊभी जोवै बाट।
आया कोनी सायबा, मिठाइ ल्यासी हाट॥
परदेसी री याद में, सूख रयी दिन-रात।
पिवजी जद घर आवसी, करस्यूं मन री बात॥
गोरा-गोरा हाथ में, मेंदी राची लाल।
निरखण आळा घर नहीं, घणौ हुयो'ज मलाल॥
मेंदी लाय सोजत री, मांड्या दोनूं हाथ।
रंग सुरंगो आवियो, मिळसी पिव रो साथ॥
बागां में झूला पड़्या, सखियां झूलण जाय।
परदेसी री याद में, मरवण घण दुख पाय॥
सखियां चाली बाग में, कर सोळा सिणगार।
चित आया थे सायबा, जोड़ी रा भरतार॥
मरवण म्हैलां चढ़ गई, कर सोळा सिणगार।
ओळ्यूं तो आवै घणी, सेजां रा अणगार॥
सावण सुरंग आवियो, नित का बरसै मेह।
परदेसी री गोरड़ी, साजन भूल्या नेह॥
कची कळी कचनार सी, चंदण जैड़ी देह।
परदेसी री याद में, आख्यां बरसै मेह॥
नैण कटोरा मद भरै, होठ पांखड़ी लाल।
चंदन बरणौ रंग है, गौरी रूप कमाल॥
काळी कळायण उमटी, बिन बरस्यां ही जाय।
परदेसी री गोरड़ी, अन्न जल नहीं खाय॥
नैणां सूं नैणा मिळै, हिय में हेत अपार।
आओ पिव मिल बैठस्यां, बातां रो अंबार॥
ठंड़ो चालै बायरो, हीयै उठै हिलोर।
चित आया थे सायबा, नाचै मन रो मोर॥
चंदण जेड़ी काय है, केस घटा घणघोर।
केळा जेड़ी कामणी, चरचा है चहुंओर॥
माथै रखड़ी सोवणी, कुंडळ सोवै कान।
सावण आवो सायबा, धण रो बधावो मान॥