दो नैणा, दो हाथ, दो, पग-मग चालो देख।

खाबा खातिर तो दियो, ईश्वर नै मुख अेक।।

दो सुबहा दो शाम की, दो दिन में दो रात।

अठ रोटी के कारणै, दुनियां भागी जात।।

दो भांती भोजन करै, ईं दुनियां के मांय।

खाबा खातिर जीवता, जीबा खातिर खाय।।

दो रोटी लूखी भली, मिलै सुक्ख सम्मान।

दूभर गळै उतारबो, दुख में पच पकवान।।

खान पान निर्भर करै, मिनखाजूण सुभाव।

भोजन करता तामसी, दया कहां सूं आव।।

सादो भोजन ज्यो करै, बंधै ईश सूं डोर।

सब जीवां में मानतो, ईश्वर सगळी ठोर।।

खट्टो तीखो चरपरो, मिरच मसालादार।

भोजन सब राजसी, करता दुषित विचार।।

मधुर रसीला रस भर्या, रस गौरस फळ साग।

अरपण कर भगवान कै, जींमो मान प्रसाद।।

भोजन करती बगत पै, त्यागो क्ळेश बिचार।

प्रेम सहित भोजन करो, मान ईश आभार।।

ज्यो थाळी में आइयो, ही लिखियो भाग।

आदर अर सत्कार कर, बुझा पेट की आग।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : जयसिंह आशावत
जुड़्योड़ा विसै