कटै न को दिन काटियां, कटै न किण ही राह।
कटही बंधण देस रा, कांधा कटियां नाह॥
वीरांगना स्वदेश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के हेतु अपने पति से साग्रह निवेदन करती है कि है नाथ! मातृभूमि की परतंत्रता की बेड़ियाँ तो खड़्गो द्वारा ही काटी जा सकती हैं, न कि इधर-उधर व्यर्थ दिन बिताने से और न किसी अन्य प्रकार के ही थोथे साधनों से।