नित्त जगावै पीव नूँ, जावै रण घमसाण।

मुरग बोलै तिण पहल, नीलौ हींसै ठाण॥

नीलाश्व की वीर प्रकृति को लक्ष्य में रखकर वीरपत्नी कहती है कि प्रतिदिन जल्दी उठकर घमासान युद्ध में जाने से अश्व की प्रकृति ही ऐसी हो गई है कि वह नित्य ही मुर्गा बोलने से पूर्व अपने स्थान पर बँधा हुआ जोर-जोर से हिनहिनाकर प्रियतम को जगा देता है।

स्रोत
  • पोथी : महियारिया सतसई (वीर सतसई) ,
  • सिरजक : नाथूसिंह महियारिया ,
  • संपादक : मोहनसिंह ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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