गवरां नै गिणगोरियां,

नाचै घूमर नार।

चैत मास चिलकौ करै,

हुयौ काळ हुसियार॥

चारूं कांनी चैत में,

झींणै बायरियेह।

काळ रमावै कोड सूं,

परणी पीहरियेह॥

नवौ बरस पलटै परौ,

बीत्यां आधै चैत।

काळ कुलंगी कपट कर,

निरभै घालै नैत॥

चिलक्यौ जबरौ चेत में,

तावड़ तड़तड़तोह।

पांणी सरवर पाखरां,

बैरी बळबळतोह॥

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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