सूरज किरणां चाव में फूटी कळी समूळ।

लूआं दीसी सामनै लागी हिवड़ै सूळ॥

भावार्थ:- सूर्य-किरणों से गले मिलने की उत्कंठा में कलियां कभी से मुकुलित हो उठी थी और साथ ही लूओं का आगमन अनूभव कर उनके हृदय में तीव्र वेदना होने लगी।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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