सूरज किरण उंतावळी मिलण धरा सूं आज।
वादळियां रोक्यां खड़ी कुणऊजाणै किण काज॥
भावार्थ:- आज धरा से मिलने के लिये सूर्य-किरणें उतावली हो रही है। पर न जाने क्यों बादलियां उन्हें रोके खड़ी है।