सेवक कुंभ कुंभार गुर, घड़ि -घड़ि काढै़ खोट।

रज्जब मांहि सहाइ करि,तब बाहेर दे चोट॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बाणी ,
  • सिरजक : रज्जब ,
  • संपादक : व्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड; कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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