सावण सांझ सुहावणी, वाजै झीणी वाळ।
गावै मूमल गोरड़्यां, खावै हियो उछाळ॥
भावार्थ:- सावन की संध्या सुहावनी है। धीमी हवा चल रही है और गोरियां 'मूमल' गीत गा रही हैं जिससे हृदय उछाल खा रहा है।