सावण सांझ सुहावणी, वाजै झीणी वाळ।

गावै मूमल गोरड़्यां, खावै हियो उछाळ॥

भावार्थ:- सावन की संध्या सुहावनी है। धीमी हवा चल रही है और गोरियां 'मूमल' गीत गा रही हैं जिससे हृदय उछाल खा रहा है।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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