सुणियौ सांवण मास में,

झड़ियां बरसै मेह।

पण काळ पड़्यौ एड़ौ कटक,

नैणां झरियौ नेह॥

हेली हींडा हींडती,

पूछै तरवर पात।

कैड़ी लागै काळ में,

बैरागी री बात॥

बैना बांधण राखड़ी,

पूगी पीहर पौळ।

काळ बिछेवौ कर गयौ,

मन में पड़गी मौळ॥

बीनणियां बिलमाय मन,

बद बद करै बखांण।

पण सेवट सांवण मास में,

पाड़ी काळ पिछांण॥

सांवण में सर सूखियौ,

पांणी सूनी पाळ।

जळ पताळां पूगियौ,

करड़ौ पड़ियौ काळ॥

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै