निरालम्ब निर्बासना इच्छाचारी येह।
संस्कार पवनहि फिरै शुष्क पर्ण ज्यौं देह॥
जीवन मुक्त सदेह तूं लिप्त न कबहूं होइ।
तो कौं सोई जानि है तव समान जे कोई॥
मानि लिये अंतहकरण जे इन्द्रिनि के भोग।
सुन्दर न्यारौ आतमा लग्यौ देह कौं रोग॥
बैद हमारै रामजी औषधि हू है राम।
सुन्दर यहै उपाइ अब सुमिरन आठौं जाम॥
सात बरस सौ मैं घटै इतने दिन की देह।
सुंदर आतम अमर है देह खेह की खेह॥
सुन्दर संसै को नहीं बड़ो महोच्छव येह।
आतम परमातम मिले रहौ कि बिनसौ देह॥