सूरज किरण उंतावळी मिलण धरा सूं आज।

वादळियां रोक्यां खड़ी कुणऊजाणै किण काज॥

भावार्थ:- आज धरा से मिलने के लिये सूर्य-किरणें उतावली हो रही है। पर जाने क्यों बादलियां उन्हें रोके खड़ी है।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
जुड़्योड़ा विसै