प्रीतम रो मुख पेखतां हिवड़ो होवै हेम।

लूआं पण रोकै मिलण भलो निभावै नेम॥

भावार्थ:- प्रीतम के दर्शन को पाकर हृदय शीतल होता है पर लूअें उनके पारस्परिक मिलन में बाधक बनकर अपना हठ पूरा करती हैं।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
जुड़्योड़ा विसै