प्रीतम रो मुख पेखतां हिवड़ो होवै हेम।
लूआं पण रोकै मिलण भलो निभावै नेम॥
भावार्थ:- प्रीतम के दर्शन को पाकर हृदय शीतल होता है पर लूअें उनके पारस्परिक मिलन में बाधक बनकर अपना हठ पूरा करती हैं।