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काया मांहि कंवलदल
हरिदास निरंजनी
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काया
मांहि
कंवलदल,
तहां
बसै
करतार।
अवरण
बरण
अकैह
अगैह,
अगम
बार
नहिं
पार॥
स्रोत
पोथी
: श्री महाराज हरिदासजी की बाणी सटिप्पणी (निरपख मूल)
,
सिरजक
: हरिदास
,
संपादक
: मंगलदास स्वामी
,
प्रकाशक
: निखिल भारतीय निरंजनी महासभा, दादू महाविद्यालय, जयपुर
,
संस्करण
: प्रथम
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काया
भगवान
निरंजनी सम्प्रदाय
निर्गुण भक्ति काव्य