जीवण दाता वादळ्यां, थांसूं जीवण पाय।

भल लूआं बाजो किती, मुरधर सहसी लाय॥

भावार्थ:- मरुधरा को जीवन प्रदान करने वाली बादळियां भी तुमसे अपना जीवन प्राप्त करती हैं, अतः लूओं, चाहे जितनी चलो, मरुधरा तुम्हारे ताप को स्वेच्छा से सहन करेगी।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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