हणवँत गिर नहँ तोकता, जड़ी सजीवण लेण।
लछमण मुरछा खुल्लती, सुणता चारण वैण॥
चारणों की वाणी इतनी उत्साह-प्रदायिनी और ओज-स्विनी होती है कि वह मुर्दों में भी जान फूँक देती है, इस बात को लक्ष्य में रखकर कोई वीर कहता है कि राम-रावण युद्ध में मेघनाद के शक्ति-संचालन से लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर वहाँ यदि कोई चारण-कवि होता तो उसकी स्फूर्ति-प्रदायिनी तथा ओजस्विनी वाणी सुनते ही लक्ष्मण की मूर्छा खुल जाती और संजीवनी जड़ी-बूटी लाने के निमित्त वीर हनुमान को द्रोण-गिरि उठाकर लाने का भगीरथ प्रयास नहीं करना पड़ता।