हर पौधा पे फूल छै, जद आवै मधुमास।

ज्यूं सज्जन के आवंता, होवै सुख आभास।।

मोर पपीहा बोलता, कोयल गाती गीत।

वे दिन पाछा दे प्रभू, हिरदै उमगै प्रीत।।

देखण छावो चांदणी, अर तारा आकास।

महानगरां में न्ह मिलै, गांवां करो निवास।।

गगन सिंदूरी होवंता, पंछी उडै कतार।

सूरज स्वागत बांधता, जाणै तोरण द्वार।।

धीरै धरती उतरती, सांझ लजाळू नार।

पिव चन्दा की बाट में, काळो काजळ सार।।

भ्रम छै ऊं ठोड़ां मिलै, धरती अर आकास।

कतरो भी ल्यो दौड़ थे, कदै न्ह आवै पास।।

फूल हंसे मुळकै कळी, बगिया भरै उछाव।

ये सब संभव होवता, माळी कै बरताव।।

भोर हुई सूरज उग्यो, धरती करती भेंट।

जतरा मोती ओस का, सौंप्या सकल समेट।।

रात अंधेरी बीतगी, उगियो सूरज भाण।

दिन का स्वागत में करै, पंछी कलरव गान।।

बाग बगीचा घूमता, भोर मिलै आणन्द।

भूंरा तो गुंजन करै, कलरव पंछीबृन्द।।

स्रोत
  • सिरजक : जयसिंह आशावत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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