वा दिस सखी! सुहावणी, सह दिस हूंत विसेस।
बिण माथै खग वाहणा, नर निपजै जिण देस॥
हे सखि! वह वीर प्रसविनी दिशा अन्य सब दिशाओं से कई गुनी अधिक सुहावनी है जिस देश में ऐसे वीर-रत्न जन्म लेते है जो मस्तक कट जाने पर भी कबंध रूप में तलवार चलाते रहते है।