रण चढ़िया पट पहरियां, आवध लियौ न हेक।
पिव हंदा पट ऊपरा, वारूं बगतर केक॥
केवलमात्र वेशभूषा से ही सज्जित वीर के देश-हितार्थ रणभूमि में प्रस्थान करने की विशेषता को लक्ष्य में रखकर देशसेवक पत्नी कहती है कि प्रिय देव केवल वस्त्र धारणकर और हाथ में कुछ भी शस्त्रादि न लेकर मातृभूमि के हेतु युद्ध में कूद पड़े। उनकी यह वेशभूषा ऐसी अछेध्य तथा अभेध्य है कि इस पर कितने ही सुदृढ़ लौह-कवच न्यौछावर किये जा सकते है।